Galti Ki Tujhe Sir Par Bithake Poetry by KANHA KAMBOJ | The Realistic Dice

Galti Ki Tujhe Sir Par Bithake Poetry by KANHA KAMBOJ | The Realistic Dice

About This Poetry :- This beautiful Poetry  ‘Galti Ki Tujhe Sir Par Bithake‘ for The Realistic Dice is performed by Kanha Kamboj and also written by him which is very beautiful a piece.

Galti Ki Tujhe Sir Par Bithake

बात मुझे मत बता क्या बात रही है
रह साथ उसके, साथ जिसके रात रही है 
ज़रा भी ना हिचकिचायी होते हुए बेआबरू,
बता तेरे जिस्म से और कितनों की मुलाकात रही है
वस्ल की रात बस एक किस्सा बनकर रह गई
मेरे हाथ में तेरी यादों की हवालात रही है
वक्त के चलते हो जाएगा सब ठीक
अंत भला क्या होगा बुरी जिसकी इतनी शुरूवात रही है
बदन के निशान बताए गए जख्म पुराने
मोहतरमा कमजोर कहां मेरी इतनी याददाश्त रही है
गैर के साथ भीगती रही रात भर
बड़ी बेबस वो बरसात रही है
कुछ अश्क बाकी रह गया तेरा मुझमें
वरना कब किसी की इतनी कही बर्दाश्त रही है
गलती मेरी ये रही तुझे सर पर बैठा लिया
वरना कदमों लायक भी कहां तेरी औकात रही है
तेरे इश्क में कर लिया खुद को बदनाम इतना
जरा पूछ दुनिया से कैसी कान्हा की हैयात रही है

सुना है तेरी चाहत में मर गए लोग
यानी बहुत कुछ बड़ा कर गए लोग
सोचा कि देखे तुझे और देख के सोचा ये
तुझे सोचते हुए क्या क्या कर गए लोग
तेरी सोहबत में आने के बाद सुना है
नहीं दोबारा मुड़कर फिर घर गए लोग
तुझसे मोहब्बत में कुछ भी नहीं हासिल।
तेरे लिए हद से गुजर गए लोग
तुम छोड़ दो उस अप्सरा की बातें कान्हा
अप्सरा नहीं होती कहकर गये लोग

मेरे लहजे से दब गयी वो बात
तेरे हक में कही थी मैंने जो बात
तेरी एक नहीं से खामोश हो गया मैं
कहने को तो थी मुझ पर सौ बात
तू सोच, के बस तुझसे कही है 
मैंने किसी से नहीं कही जो बात
तू किसी से कर मुझे ऐतराज नहीं
ताल्लुक अगर मुझसे रखती हो वो बात

                                   – Kanha Kamboj