KANHA KO BEBAS BANA GAYI WO by Kanha Kamboj | TRD Poetry

KANHA KO BEBAS BANA GAYI WO by Kanha Kamboj | TRD Poetry

About This Poetry :- This beautiful Poetry  ‘Kanha Ko Bebas Bana Gayi Wo‘ for The Realistic Dice is performed by Kanha Kamboj and also written by him which is very beautiful a piece.

Kanha Ko Bebas Bana Gayi Wo

अपनी हकीकत में ये एक कहानी करनी पड़ी
उसके जैसी मुझे अपनी जुबानी करनी पड़ी
कर तो सकता था बातें इधर उधर की बहुत
मगर कुछ लोगों में बातें मुझे खानदानी करनी पड़ी
अपनी आँखों से देखा था मंजर बेवफाई का
गैर से सुना तो फिजूल हैरानी करनी पड़ी
मेरे ज़हन से निकला ही नहीं वो शख्स 
नये महबूब से भी बातें पुरानी करनी पड़ी
उससे पहले मोहब्बत रूह तलक की मैंने
फिर हरकतें मुझे अपनी जिस्मानी करनी पड़ी
ताश की गड्डी हाथ में ले कान्हा को जोकर समझती रही
फिर पत्ते बदल मुझे बेईमानी करनी पड़ी
जैसे चलाता हूं वैसे नहीं चलता
कैसे बताऊं यार ऐसे नहीं चलता
खुदको मेरा साया बताता है  
फिर क्यूं तू मेरे जैसे नहीं चलता
तेरे इश्क में हूं बेबस इतना मैं 
जवान बेटे पर बाप का हाथ जैसे नहीं चलता 
दर्द, दिमाग, वार, ये शायद जंग है 
मेरी जां मोहब्बत में तो ऐसे नहीं चलता
बस यही बातें हैं इस पूरी गजल में कान्हा 
कभी ऐसे नहीं चलता कभी वैसे नहीं चलता।
Tera Dimag Kharab Hai Kya? ( तेरा दिमाग खराब है क्या?)
कहती है तुमसे ज्यादा प्यार करता है 
उसकी इतनी औकात है क्या?
रकीब का सहारा लेकर कान्हा को बुला दूंगी 
तेरा दिमाग खराब है क्या?
 Written By:
 Kanha Kamboj

Kanha Ko Bebas Bana Gayi Wo Video