‘Pyaar Ka Blood Test’ | UnErase Poetry
In this poem, 15 days that Kubbra Sait & Kunal Kapoor spoke about is the blood transfusion frequency of a thalassemia major patient. A thalassemia major patient needs blood every 15 days to survive for life And at the end of this poem, they also urge people to get a blood test.
This beautiful Poem ‘Pyaar Ka Blood Test‘ has Written by Mohammed Sadriwala & Rakesh Tiwari and Performed by Kubbra Sait & Kunal Kapoor. Shot at The Cuckoo Club, Bandra.
Pyaar Ka Blood Test
आने वाले कल को संभाले तो
बीते लम्हे छूट जाते हैं
कुछ पुराने यार कभी नहीं मिलते
ऐसे रूठ जाते हैं
एक फुर्सत का मंजर आज जमाने के बाद आया
यादों की एल्बम पलट कर देखी
एक पुराना यार याद आया
ये वो दिन थे जब कोई भी काम करना कुछ भी खेलने के बाद था
बुझा-बुझा सा एक दोस्त मेरा
नाम मगर चिराग था
हर 15 दिन चिराग फिर से जलता
मैदान में खेलने की जिद करता
मगर उसकी फरियाद घर की चार दीवारों में रह जाती
उसे मना करने वाला कोई और नहीं होता
उसकी मां ही होती
जो हर बार उसे मना करने के बाद अकेले में घंटों रोती
बुजुर्गों सी बाते करता
तूफान था, तहलका था
हवा भी चलती तो हिल जाता
इतना वजन में हल्का था
हर तस्वीर में आता
हर बार हर याद में जुड़ना चाहता वो
सुपरमैन वाला लिबास पहनकर
न जाने कहां उड़ना चाहता वो
अपनी हर बात कहने के लिए वह सांस खींचते रह जाता
हर रेस में अपना नाम लिखवाता
और सबसे पीछे रह जाता
हर 15 दिन उनकी टीम पक्का हार जाती
क्योंकि शोएब के बिना उनकी टीम कमजोर पड़ जाती
लाख समझाने के बाद भी पता नहीं वो कहां गायब हो जाता
अगले दिन पूछने पर बड़े अजीबोगरीब बहाने बनाता
रंग उसका पीला या सफेद कभी हमसा ना दिखता वो
पर ये क्या है…??
वो क्यों है…?
पूछते पूछते कुछ नया रोज सिखता वो
वो क्यों है…?
पूछते पूछते कुछ नया रोज सिखता वो
कभी दिवाली के पटाखों से भागता
और पिचकारी में लाल रंग ना भरता वो
हर 2 महीने में स्कूल से 2 दिन गायब
मुझे लगा शायद मैथ और हिस्ट्री से डरता वो
हर 15 दिन रुबेन फैजा से 1 कदम दूर होता
अपने दिल को किस्तों में दर्द देता
फैजा इस behavior से पशोपेश में पड़ जातीं
रूबेन इज़हार क्यों नहीं करता??
ये सवाल खुद से बार-बार दोहराती..
लेकिन अस्पताल की बिस्तर पर देर तक जागना
बेरंग सा लगना
ये सब था उसके लिए नया नही
बचपन भले ही बीत गया पर चेहरे से बचपना गया नहीं
अच्छा तुम्हारी उम्र कितनी है? जैसे सवालों से हर रोज कतराने लगता
हाथ में गिटार आते ही
“कल हो ना हो…..” हां बस यही गीत गाने लगता
पूछने पर यही कहता मेरे लिए की गई सभी मन्नते दुआएं बेअसर हैं
सुर्ख लाल रंग है इलाज मेरा
और वही मेरा जहर भी है
और हर 15 दिन 20 साल का गुरमीत
5 years down the line सुन कर मुस्कुराता
जिंदगी का मैदान उसे फतेह करना है उसके बाद इनतमिनान से रिटायरमेंट
यही सपना उसे हकीकत में नजर आता
काश मां पापा पहले जान लेते
इससे ज्यादा कभी कुछ कहा नहीं
उसको क्या हुआ था ये भी तब जाना
जब बताने के लिए खुद दुनिया में रहा नही
वो बिना किसी फ़िकर के गुजारना हर दिन चाहता था
वो मोमबत्तियां बुझाकर केक काटने वाला एक और जन्मदिन चाहता था
हर 15 दिन बाद किसी और को उसकी तरह
15 दिनों वाली जिंदगी ना मिले बस यही दुआ करता
यही दुआ करता की जो उसका कल था वो किसी का आज ना हो
फिर किसी के घर, गली या आशियाने में
हर रोज बुझता चिराग ना हो।
– Written by Mohammed Sadriwala & Rakesh Tiwari