Kedarnath Singh Ki Kavitaye – Jeevan Parichay | केदारनाथ सिंह की कविताएं – जीवन परिचय

Famous Poems Of Kedarnath Singh | केदारनाथ सिंह की प्रसिद्ध कविताएं कविताएं | केदारनाथ सिंह यह पृथ्वी रहेगी रक्त में खिला हुआ कमल  अकाल में दूब  अकाल में सारस  आँकुसपुर  आना यह अग्निकिरीटी मस्तक एक कविता – निराला को याद करते हुए अँगूठे का निशान अड़ियल साँस एक छोटा सा अनुरोध एक दिन हँसी-हँसी में … Read more

Ek Mukut Ki Tarah – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

एक मुकुट की तरह | केदारनाथ सिंह  केदार जी को प्रकृति से बहुत लगाव रहता था ऐसा उनके कविताओं में साफ देखने को मिलता है। जब भी कोई विचित्र या अनोखा बिंब उन्होंने दिखाई देता है वो झट से इसे कविताबद्ध कर देते ताकि ये आजीवन जीवित रहे इन कविताओं में। ‘अकाल में सारस‘ नामक कविता-संग्रह … Read more

Ek Din Hansi Hansi Mein – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

एक दिन हँसी-हँसी में | केदारनाथ सिंह  ‘अकाल में सारस‘ नामक कविता-संग्रह में‌‌ संकलित यह हिन्दी कविता ‘एक दिन हँसी-हँसी में‘ केदारनाथ जी प्रसिद्ध कविताओं में से एक है। एक दिन हँसी-हँसी में एक दिन हँसी-हँसी में उसने पृथ्वी पर खींच दी एक गोल-सी लकीर और कहा – ‘यह तुम्हारा घर है’ मैंने कहा – ‘ठीक, … Read more

Honth – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

होंठ | केदारनाथ सिंह  ‘अकाल में सारस‘ केदारनाथ सिंह जी की प्रसिद्ध कविता-संग्रहो में से एक है जिसमें यह कविता ‘होंठ‘ भी सम्मिलित हैं। होंठ हर सुबह होंठों को चाहिए कोई एक नाम यानी एक खूब लाल और गाढ़ा-सा शहद जो सिर्फ मनुष्य की देह से टपकता है कई बार देह से अलग जीना चाहते हैं … Read more

Aamukh – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

आमुख | केदारनाथ सिंह ‘आमुख‘ केदारनाथ सिंह जी द्वारा लिखी गई एक हिन्दी कविता है। यह केदार जी की ‘बाघ‘ नामक काव्य-संग्रह में सम्मिलित कविताओ में से एक है। आमुख बिंब नहीं प्रतीक नहीं तार नहीं हरकारा नहीं मैं ही कहूँगा क्योंकि मैं ही सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ मेरी पीठ पर मेरे समय के … Read more

Srishti Par Pahra – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

सृष्टि पर पहरा | केदारनाथ सिंह  सृष्टि पर पहरा जड़ों की डगमग खड़ाऊँ पहने वह सामने खड़ा था सिवान का प्रहरी जैसे मुक्तिबोध का ब्रह्मराक्षस – एक सूखता हुआ लंबा झरनाठ वृक्ष जिसके शीर्ष पर हिल रहे तीन-चार पत्ते कितना भव्य था एक सूखते हुए वृक्ष की फुनगी पर महज तीन-चार पत्तों का हिलना उस विकट … Read more

San 47 Ko Yaad Karte Hue – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

सन् ४७ को याद करते हुए | केदारनाथ सिंह  इस कविता में केदार जी अपने बचपन के मित्रों गेहुँए, डिगने नूर मियां को याद करते हुए कई सवाल करते है जो अपने ही देश के थें, अपने लोग । जिन्हें जाना पड़ा था भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद। ‘यहां से देखो‘ केदारनाथ सिंह जी … Read more

Sui Aur Taage Ke Beech Me – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

सुई और तागे के बीच में | केदारनाथ सिंह  सुई और तागे के बीच में माँ मेरे अकेलेपन के बारे में सोच रही है पानी गिर नहीं रहा पर गिर सकता है किसी भी समय मुझे बाहर जाना है और माँ चुप है कि मुझे बाहर जाना है यह तय है कि मैं बाहर जाऊँगा तो … Read more

Shaam Bech Dee Hai – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

शाम बेच दी है | केदारनाथ सिंह  शाम बेच दी है शाम बेच दी है भाई, शाम बेच दी है मैंने शाम बेच दी है! वो मिट्टी के दिन, वो घरौंदों की शाम, वो तन-मन में बिजली की कौंधों की शाम, मदरसों की छुट्टी, वो छंदों की शाम, वो घर भर में गोरस की गंधों की … Read more

Shahar Me Raat – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

शहर में रात | केदारनाथ सिंह  1982 में लिखी केदारनाथ की कविता ‘शहर में रात’ कविता-संग्रह ‘यहां से देखो’ से ली गई है। इस कविता में संघर्ष और कभी न खत्म होने वाली इच्छाओं का जिक्र है। कविता में केदार जी ने बखूबी चित्रण करते हुए कहा है कि पुरा शहर बदल ही क्यों ना जाए … Read more