Difficult Words
फाख्ता = कबूतर की तरह का एक पक्षी जो भूरापन लिए लाल रंग का होता है।
जेहनी = मानसिक।
बशर = व्यक्ति।
वज़ादार = सुंदर बनावटवाला, सजधज से युक्त।
जवाल = आफत; समस्या।
मयार = दयालु।
नजूमी = ज्योतिषी।
कांसा = कटोरा।
मयकशी = शराब पीना।
अफलातून = वह जो अपने को दूसरों से अधिक बुद्धिमान समझता हो।
लज़्ज़त = ज़ायका, स्वाद।
समाअत = सुनना।
Tere Bagair Hi Ache The
दबी कुचली हुई सब ख्वाहिशों के सर निकल आए
जरा पैसा हुआ तो चींटी के पर निकल आए
अभी उड़ते नहीं तो फाख्ता के साथ हैं बच्चे
अकेला छोड़ देंगे मां को जिस दिन पर निकल आए
जगह की कैद नहीं थी कोई कहीं बैठें
जहां मकाम हमारा था हम वहीं बैठें
अमीरी शहर के आने पे उठना पड़ता है
लिहाजा अगली सफ़ों में कभी नहीं बैठें
सबसे बेजार हो गया हूं मैं
जेहनी बीमार हो गया हूं मैं
कोई अच्छी ख़बर नहीं मुझमें यानी अख़बार हो गया हूं मैं
मैं न कहता था हिज्र कुछ भी नहीं
खुद को हलकान कर रहीं थी तुम
कितने आराम से है हम दोनों
देखा बेकार डर रहीं थी तुम
ऐसे हालात से मजबूर बशर देखे हैं
असल क्या सूद में बिकते हुए घर देखे है
हमने देखा है वज़ादार घरानों का जवाल
हमने सड़कों पे कहीं शाह जफर देखे.
गम की दौलत मुफ्त लुटा दूं…. बिल्कुल नहीं!
अश्कों में ये दर्द बहा दूं…..बिल्कुल नहीं!
तूने तो औकात दिखा दी है अपनी
मैं अपना मयार गिरा दूं… बिल्कुल नहीं!
एक नजूमी सबको ख्वाब दिखाता है.
मैं भी अपना हाथ दिखा दूं…. बिल्कुल नही!
मेरे अंदर एक ख़ामोशी चीखती है
तो क्या मैं भी शोर मचा दूं…बिल्कुल नही!
तेरी खता नहीं जो तू गुस्से में आ गया
पैसे का जोन था तेरे लहज़े में आ गया
सिक्का उछालकर के तेरे पास क्या बचा?
तेरा गुरूर तो मेरे कांसे में आ गया
हर अन्धेरा रौशनी में लग गया
जिसको देखो शायरी में लग गया
हमको मर जाने की फुर्सत कब मिली?
वक्त सारा जिन्दगी में लग गया
अपना मयखाना बना सकते थे हम
इतना पैसा मयकशी में लग गया
खुद से इतनी दूर जा निकले थे हम
एक ज़माना वापसी में लग गया
शराब दौड़ रही है रगों में खून नहीं
मेरी निगाह में अब कोई अफलातून नहीं
कसम ख़ुदा की बड़े तजुर्बे से कहता हूं
गुनाह करने में लज़्ज़त तो है सुकून नहीं
इतना मजबूर न कर बात बनाने लग जाए.
हम तेरे सर की कसम झूठी खाने लग जाए
सन्नाटे पिये मेरी समाअते ने की अब
सिर्फ आवाज पे चाहूं तो निशाने लग जाए
मैं अगर अपनी जवानी की सुना दूं क़िस्से
ये जो लौंडे हैं मेरे पांव दबाने लग जाए।
इश्क में दान करना पड़ता है.
जान को हलकान करना पड़ता है.
तजुर्बा मुफ्त में नहीं मिलता.
पहले नुकसान करना पड़ता है.
उसकी बे लफ्ज गुफ्तगू के लिए
आँख को कान करना पड़ता है
फिर उदासी के भी तकाजे है
घर को वीरान करना पड़ता है।
बगैर उसको बताये निभाना पड़ता है.
ये इश्क राज है इसको छुपाना पड़ता है
मैं अपने ज़हन की ज़िद से बहुत परेशान हूं
तेरे ख्याल़ की चौखट पे आना पड़ता है.
तेरे बगैर ही अच्छे थे क्या मुसीबत है?
ये कैसा प्यार है? हर दिन जताना पड़ता है।
– Mahshar Afridi