Famous Poems Of Kedarnath Singh | केदारनाथ सिंह की प्रसिद्ध कविताएं
कविताएं | केदारनाथ सिंह
- यह पृथ्वी रहेगी
- रक्त में खिला हुआ कमल
- अकाल में दूब
- अकाल में सारस
- आँकुसपुर
- आना
- यह अग्निकिरीटी मस्तक
- एक कविता – निराला को याद करते हुए
- अँगूठे का निशान
- अड़ियल साँस
- एक छोटा सा अनुरोध
- एक दिन हँसी-हँसी में
- एक मुकुट की तरह
- ओ मेरी उदास पृथ्वी
- कुछ और टुकड़े
- कुछ टुकड़े
- खर्राटे
- घुलते हुए गलते हुए
- दुपहिया
- छोटे शहर की एक दोपहर
- जे.एन.यू. में हिंदी
- कुछ सूत्र जो एक किसान बाप ने बेटे को दिए
- काली मिट्टी
- जड़ें
- जूते
- जनहित का काम
- जब वर्षा शुरू होती है
- बढ़ई और चिड़िया
- बनारस
- झरबेर
- दृश्ययुग-1
- दृश्ययुग-2
- दूसरे शहर में
- दाने
- दिशा
- धीरे-धीरे हम
- न होने की गंध
- बसंत
- मंच और मचान
- नए शहर में बरगद
- नदी
- पूँजी
- पानी में घिरे हुए लोग
- फलों में स्वाद की तरह
- मेरी भाषा के लोग
- मातृभाषा
- सुई और तागे के बीच में
- सन ४७ को याद करते हुए
- लयभंग
- लोककथा
- वह
- शहर में रात
- शहरबदल
- शाम बेच दी है
- सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए
- सृष्टि पर पहरा
- होंठ
केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय:
वर्तमान दौर के हिन्दी साहित्य में अपनी कविता के माध्यम से लोगों के दिलो पर छा जाने वाले प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह का जन्म 20 नवम्बर सन् 1934 में बलिया जिले के चकिया गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था, इनके पिता का नाम डोमन सिंह एवं माता का नाम लालझरी देवी था, इनका गाँव चकिया लगभग पांच हजार की आबादी वाला गाँव है तथा इसकी स्थिति बलिया जिले के अंतिम पूर्वी छोर पर गंगा एवं सरयू नदी की गोद में बसी हुई है !
केदारनाथ सिंह की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके गाँव बलिया में ही प्राथमिक विद्यालय में हुई, अपने गाँव में आठवीं की शिक्षा प्राप्त करने के बाद केदारनाथ सिंह बनारस चले आये और यहीं पर इंटर की पढ़ाई करने के साथ ही उदय प्रताप कालेज(UP College) से स्नातक तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय(BHU) से हिंदी में परास्नातक की शिक्षा प्राप्त किया और परास्नातक की शिक्षा पूरी होने के बाद सन् 1964 ई० में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय(BHU) से आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्ब-विधा ’ विषय पर
पी०एचडी० की उपाधि प्राप्त की।
केदारनाथ सिंह का जीवन काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा। इन्होंने अपनी पहली नौकरी सन् 1969 ई० में पड़रौना के एक कालेज से शुरू किया जो की जीवन के आर्थिक संकट के दौरान इन्होंने अपनी पहली नौकरी सन् 1969 ई० में पड़रौना के एक कालेज से शुरू किया, और ऐसा कहा जाता है की पड़रौना में नौकरी के दौरान इनकी पत्नी की तबियत काफी ख़राब हो गयी थी और कुछ ही दिनों के बाद इनकी पत्नी का निधन हो गया था जो की इनके जीवन का एक दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सो में से एक था।
इनके परिवार में इनकी पांच बेटियाँ एवं एक बेटा है, कुछ दिनों तक केदारनाथ सिंह ने अपनी सेवा गोरखपुर के सेंटएड्रयूज कालेज में भी दिया था और यहाँ के बाद इनकी नियुक्ति देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय(JNU) नई दिल्ली में हिंदी विभाग में हुई थी।
केदारनाथ सिंह की कविताएं शब्दों का श्रृंगार हैं । उसके अर्थ नए हैं , उसकी प्रतीतियां नई हैं । उनकी कविता हमेशा पुनर्नवा और तरोताजा दिखती हैं और युवा लेखकों को भी बहुत भाती है।
जीवन के अंतिम काव्य-संग्रह में इन्होनें “जाऊँगा कहाँ” को अपनी अंतिम कविता के रूप में रखा जिसकी कुछ लाइनें संसार से विदा होने के संकेतों को साफ समझा जा सकता है….!
जाऊंगा कहाँ, रहूँगा यहीं
किसी किवाड़ पर, हाथ के निशान की तरह
पड़ा रहूंगा किसी पुराने ताखे, या सन्दुक की गन्ध में
19 मार्च 2018 ई० को नई दिल्ली के एम्स में इलाज के दौरान संसार को अलविदा कह दिया !
साहित्य जगत, रचनाएं और सम्मान:
साहित्य जगत में यह एक विख्यात लेखक के रूप में जाने जाते है। ये दिल्ली में रहकर भी बलिया और बनारस की मिट्टी को भुले नहीं थे, वो इन्हें अपने रचनाओं के द्वारा याद किया करते थे और इसे अपने पास पाते थे। इनकी प्रमुख रचनाओं में अकाल में सारस, बाघ, उत्तर कबीर तथा अन्य कविताएँ, अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, ‘रोटी’, ‘जमीन’, बैल, ‘तालस्ताय’ और ‘साइकिल संग्रह’, जैसे कई संग्रह हैं। उन्हें कविता संग्रह “अकाल में सारस” के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार (1989), मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, कुमार आशान पुरस्कार (केरल), दिनकर पुरस्कार, जीवनभारती सम्मान (उड़ीसा) और व्यास सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें साहित्य के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ सम्मान 2013 के लिए चुना गया। वे हिंदी के 10 वें रचनाकार हैं, जिन्हें यह पुरस्कार दिया गया है। केदारनाथ सिंह के ‘अभी बिल्कुल अभी’, ‘यहां से देखो’, ‘अकाल में सारस’, ‘बाघ’ जैसे कविता संग्रह बहुत प्रसिद्ध रहे हैं।