This is a Hindi comedy meaningful poem ‘Peshab ki Thaili‘, Written and performed by Prakriti Kargeti. Shots at held on Bedlam, New Delhi.
पेशाब की थैली (Peshaab Ki Thaili)
पेशाब की थैली(यूरिनरी ब्लैडर)
पेशाब की थैली फूट पड़ती कभी
पेशाब की थैली फूट पड़ती कभी तो मूत देता हूँ यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ ना जाने कहाँ-कहाँ
मुत देता हूँ इस कदर कि दर-ओ-दीवार महक उठते है
तुमने..
तुमने ना गौर किया होगा कभी,
पर मैंने तो किया.. मैंने तो किया !
कि दुनिया में निशां छोड़ के जाना
देखो कितने निशां छोड़े जा रहा हूँ महकते हुए निशान।
अरे बड़ी मेहनत से संजोई ये विरासत
छोड़ें जाऊंगा अपने पीछे की तुम मूतते रहना
मूतते रहना इस कदर कि ज़माना देखे
ऐ हुनरमंदों फुटपाथ, गलियों के कोने, पेड़ का तला, दीवारें कुछ न छोड़ना, कुछ न छोड़ना।
और वो मंच तो बिल्कुल न छोड़ना करतब दिखाने के लिए
लिखा हो जिस पर “देखो गधा मुत रहा है।”
अरे वो कहावत है ना कि नाचो इस तरह जिसे कोई न देख रहा हो
बस!..बस उसी तरह
बस उसी तरह चैन शर्म की नीचे कर बिखेर देना सारी महक
बिखेर देना सारी महक कुछ इस तरह की अगली पुरवाई हो अमोनिया की
और जब कभी…
और जब कभी हौसला कम हो तो घबराना मत
मुझे याद करना कि कैसे मैं पेशाब की थैली फूटने पर
मुत देता था यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ ना जाने कहाँ-कहाँ ।
– Prakriti Kargeti