लोककथा | केदारनाथ सिंह
इस कविता में उस लोक कथा का जिक्र है जो सदियों से लोक में प्रचलित है , लेकिन केदार जी की यह एक खास विशेषता है कि वे लोककथा कविता में लोक की विडंबनाओं को उद्घाटित करने से नहीं चुकते । इस तरह लोक और लोक संस्कृति का उद्घाटन करना कवि का मुख्य उद्देश्य नहीं रह जाता , बल्कि लोक में विद्यमान विडंबनाओं की ओर भी संकेत करना उनका लक्ष्य होता है । ‘अकाल में सारस‘ कविता-संग्रह में संकलित यह कविता ‘लोककथा‘ भी है।
लोककथा
जब राजा मरास
सोने की एक बहुत बड़ी अर्थी बनाई गई
जिस पर रखा गया उस का शव
शानदार शव जिसे देखकर
कोई कह नहीं सकता
कि वह राजा नहीं है
सबसे पहले मंत्री आया
और शव के सामने
झुककर खड़ा हो गया
फिर पुरोहित आया
और न जाने क्या
कुछ देर तक होठों में बुदबुदाता रहा
फिर हाथी आया
और उसने सूँड़ उठाकर
शव के प्रति सम्मान प्रकट किया
फिर घोड़े आए नीले-पीले
जो माहौल की गंभीरता को देखकर
तय नहीं कर पाए
कि उन्हें हिनहिनाना चाहिए या नहीं
फिर धीरे-धीरे
बढ़ई
धोबी
नाई
कुम्हार – सब आए
और सब खड़े हो गए
विशाल चमचमाती हुई अर्थी को घेरकर
अर्थी के आसपास
एक अजब-सा दुख था
जिसमें सब दुखी थे
मंत्री दुखी था
क्योंकि हाथी दुखी था
हाथी दुखी था
क्योंकि घोड़े दुखी थे
घोड़े दुखी थे
क्योंकि घास दुखी थी
घास दुखी थी
क्योंकि बढ़ई दुखी था…
– केदारनाथ सिंह
Jab raja maraas
Sone ki ek bahut badi arthi banaai gayi
Jis par rakha gaya us ka shav
Shandaar shav jise dekhkar
Koi kah nahin sakta
Ki wah raja nahin hai
Sabse pahle mantri aaya
Aur shav ke saamne
Jhukkar khada ho gaya
Phir purohit aaya
Aur na jaane kya
Kuch der tak hothon mein
Budbudata raha
Phir haathi aaya
Aur usne sund uthaakar
Shav ke parti sammaan prakat kiya
Phir ghode aye neele-peele
Jo mahaul ki gambhirta ko dekhkar
Tay nahin kar paye
Ki unhen hinhinana chaahiye ya nahin
Phir dheere-dheere
Badhayi
Dhobi
Naai
Kumhar – sab aaye
Aur sab khade ho gaye
Vishal chamchmaati hui arthi ko gherkar
Arthi ke aaspas
Ek ajab-sa dukh tha
Jisme sab dukhi the
Mantri dukhi tha
kyonki haathi dukhi tha
Haathi dukhi tha
Kyonki ghode dukhi the
Ghode dukhi the
Kyonki ghaas dukhi thi
Ghaas dukhi thi
Kyonki badhayi dukhi tha…
– Kedarnath Singh