Phaila Apne Pankh Ko | Mohit Chauhan
Phaila Apne Pankh Ko
“एक दिन देखेगी ये दुनिया
मेरी कामयाबी का हर नजारा
चँमकुगां जिस दिन,
आसमान में बनकर ध्रुव तारा.”
फैला अपने पंख को
मत रोक अपनी उड़ान को
अभी तो बहुत दूर जाना है
कुछ वादे हैं जो तुने खुद से किये है
वो हर वादा पूरा करके तुझे दिखाना है
कब तक कैद रहेगा मजबूरी के पिंजरे में
कब तक बंधा रहेगा गुलामी की जंजीरों में
बंद कर ले अपनी मुट्ठी में इस आसमां को
एक बार फिर दिखा दे क्या है तू इस जहाँ को
चुनौतियों की आंधियां तेरे आड़े आएगी
पल-पल तुझे तेरे लक्ष्य से भटकाएगी
आंधियों से तुझे तूफान बनकर टकराना है
क्योंकि इनके पार ही तेरी मंज़िल का ठिकाना है
फैला अपने पंख को
मत रोक अपनी उड़ान को
अभी तो बहुत दूर जाना है
तेरा मनोबल ही है तेरा सबसे बड़ा सहारा
कर दिखा कुछ ऐसा
की तुझसे मिलने की खातिर
टूट जाए फलक का हर सितारा
कोई नहीं निभाता साथ यहां मुश्किलों में
अपना साथ तुझे स्वंय ही निभाना है
हर कोई बिछाता यहां पत्थर और कांटे राहो में
अपने राह के हर पत्थर और कांटे को फूल तुझे बनाना है
फैला अपने पंख को
मत रोक अपनी उड़ान को
अभी तो बहुत दूर जाना है
सपनों को अपने हक़ीक़त मोड़ दे तू
हाथों की लकीरों पर विश्वास करना छोड़ दे तू
विपरीत परिस्थितियां तो जीवन का हिस्सा हैं
विपरीत परिस्थितियों का हर चक्रव्यू तोड़ दे तू
ना हिला सके कोई तेरे हौसलों को
इतना सशक्त तुझे खुद को बनाना है
किस्मत भी कांप उठे तेरी कोशिशों के आगे
ऐसा तूफानी जोश अपने अंदर जगाना है
फैला अपने पंख को
मत रोक अपनी उड़ान को
अभी तो बहुत दूर जाना है
भीतर तेरे एक हुनर छुपा है
जिसे तुने अभी नहीं जाना है
पहचान गया जिस दिन उस हुनर को तू
समझ उसी दिन कदमों में तेरे ये ज़माना है
फैला अपने पंख को
मत रोक अपनी उड़ान को
अभी तो बहुत दूर जाना है
– मोहित चौहान
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