Khusiyon Se Meri Kuch Khaas Nahi Ban Pati Poetry
कविता नहीं ये मेरी
दिल की बातें कागज पे उतारी है
हो सके तो सुन लेना
जो बातें ना समझ पाए मेरे अपने
वो बातें सुनाना चाहती हूं
हो सके तो समझ लेना
पूछ पड़ी उदासी उस रात
कहती है क्यों इतना वक्त बिताते हो मेरे साथ..(२)
क्या खुशियां तुम्हें पसंद नहीं आती
वो क्या है ना
खुशियों से मेरी कुछ खास नहीं बन पाती
ना बुलाती हूं मैं इन्हें न कभी वो है आती…(×२)
बस इसीलिए वफाई निभा रहे हैं ऐ उदासी तुझसे
क्योंकि हर वक़्त वफाए है तो निभाती
और ये बेवफा खुशियां आज मेरे पास है
तो कल कहीं और चली जाती
बस इसीलिए खुशियों से मेरी कुछ खास नहीं बन पाती
ना बुलाती हूं मैं इन्हें ना कभी वो है आती
प्यार ने और खुशियों ने मिलकर एक इरादा सा किया है
अधूरा सा साथ देने का एक वादा सा किया है…..(×२)
मैंने भी मुस्कुरा कर ऐ उदासी तुझसे
एक रिश्ता सा जोड़ लिया है
सच कहूं..
सच कहूं तो इस प्यार की और खुशियों की
मुझे कोई कमी तक नहीं सताती
बस इसीलिए खुशियों से मेरी कुछ खास नहीं बन पाती
ना बुलाती हूं मैं इन्हें ना कभी वो है आती….
किसी का प्यार नहीं मिला तो क्या हुआ
खुद से ही मोहब्बत करके हम हसँ लिए
कोई याद करता नहीं तो क्या हुआ
किसी की याद में किसी को याद करके हम जी लिए
यूं तो बैठे थे हम तनहा अधूरे से
किसी गैर के इंतजार में……(×२)
आज अपने आप से मिलके हम पूरे हो लिए
सच कहूं तो किसी के साथ की महसूस
मुझे जरूरत तक नहीं होती
बस इसीलिए खुशियों से मेरी कुछ खास नहीं बन पाती
ना बुलाती हूं मैं इन्हें न कभी वो है आती….
Thank u…