Kuch Dard Aur Sahi By Dr. Aman Chugh
Kuch Dard Aur Sahi
मोहब्बत…
मोहब्बत एक खूबसूरत सा एहसास है
और दर्द इस खूबसूरत से एहसास का वो हिस्सा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दिल और दिमाग की जंग में, दिमाग तो अक्सर कहता है बस अब और नही। पर दिल कहता है ‘कुछ दर्द और सही’…
नजरों से तेरे गिर गए हम
इश्क करके भी दिल से उतर गए हम
सजा मंजूर थी अगर गुनाह किया होता
बेवजह इल्ज़ामों में उलझ गये हम
ये गुनाह सही,
ये सजा सही,
बेवजह सही
महबूब मेरे चल छोड़
मेरी वफा के बदले
तेरे अदा किये कुछ दर्द और सही…
दिल पनाह में टूटे मेरे कुछ ख्वाब है
तेरे हाथ से छूटे गिरते लड़खड़ाते जज्बात है
तू हो मुकम्मल मेरे इश्क से,
मुझे खुद से महरूम कर गया
इल्म कम था मुझे इश्क का,
फिर तुझसे ये गिला भी क्या
मेरे टूटे ख्वाब सही,
बिखरे जज़्बात सही,
तेरी हर बात सही,
महबूब मेरे चल छोड़
मेरी वफा के बदले
तेरे अदा किये कुछ दर्द और सही…
मेरी जिंदगी में कुछ पल रंज-ए-इश्क के हैं
आंखों में आंसू है ये ख्याल दर्द-ए-इश्क के हैं
जख्म रूह पर है टींस रह-रह के उठती है
ये अंजाम वफा-ए-इश्क के हैं
क्या शिकायत मैं तुझसे करूं…
क्या शिकायत मैं तुझसे करूं
तेरे हाथ ही खंजर थमाए मैंने खुद ही है
मेरी जिंदगी में ये रंज सही,
ये जख्म़ सही,
उठती हर टींस सही,
महबूब मेरे चल छोड़
मेरी वफा के बदले
तेरे अदा किये कुछ दर्द और सही…
उल्फत के दिनों का नूर अब मध्दम सा लगता है
मैं अंधेरों की गिरफ्त में हूं हर तारा हर हरीफ़ लगता है
क्या कसूर गिनाऊं मैं तेरा महबूब मेरे मुझे ये इश्क़ ही फरेब लगता है
तू उस वक्त सही,
तू इस वक्त सही,
हर्फ़-बा-हर्फ़ सही,
महबूब मेरे चल छोड़
मेरी वफा के बदले
तेरे अदा किये कुछ दर्द और सही…
– डॉ अमन चुघ