Masoom Ishq Poetry – Faraz Hasan
Masoom Ishq Poetry
वो काली-काली रातें
और खुद से उनकी बातें
वो पहला-पहला प्यार
और उसकी मासूम यादें
रफ्ता-रफ्ता इश्क़ जमा
और फिर छोटी-छोटी मुलाकातें
तेज हवाएं और बूंदे-बूंदे
हम उन्हें देखे आंख मूंदे
मुस्कुराए हम हल्के-हल्के
और झुक जाए उनकी पलकें
गहरे रंग का इश्क चढ़ा
फिर दिल पे धीरे-धीरे
अगर कभी वो उफ़ करें
तो हम पड़ जाए पीले
बीत गया 2 साल महीना
कमजोर पड़ गई बातें
दूरियों का दौर चला
और सुनी हो गई रातें
सोचा कि कम हो जाए
दरमियां जो है, ये टकराहटे
फिर लेकर एक गुलाब चले हम
सुलझाने दिल की बातें
कमबख्त होश उड़ गए जब देखा सनम को
किसी की बाहों में बाहें डाले जाते
तोबा-तोबा अब ना करेंगे हम ऐसे किसी से प्यार
अब तो जांचेंगे परखेंगे और तब करेंगे इज़हार
दिलासा दिलाओ उन्हें कि हम टूटेंगे नहीं
उन्हें जाना है तो जाएं हम रूठेंगे नहीं
ना मैं पिएंगे ना उन्हें बेवफ़ा कहेंगे
बस एक शेर लिखेंगे और अलविदा कहेंगे।
अटकी हुई है तु ख़्यालो में कहीं
बरसों बरस ना सोचु तो भी चली आती है
वही तराशा हुआ हुस्न लेकर
सरेराह चराग जलाती हुई
वहीं मासूम चश्म और दिलों को बुझाती हुई
जब बहुत दूर चली गई हो
तो ख्वाबों में क्यों आती हो
क्यों मेरे ठंडे पड़े दिल को
तुम हल्के से धड़काती हो
जब जख़्म मरहम बनने लगता है
तो क्यों एक नया जख़्म दे जाती हो
खैर हम भी कभी एक दिलकश ख्वाब बनकर आयेंगे
और जानेमन आपको जी भर के तड़पायेंगे
सोचेंगे आप की लिखें दो शेर हमारी जानिब
पर हुनरफरा़जिश्ता आप कहां से लाएंगे।
– फ़राज़ हस़न