Musibat by Shivani Thakur | The Social House
There is a time in life when we are facing so many problems and the mind is crying that why these problems only got us. So this poem ‘Musibat‘ inspires us to understand such an ideology. This one motivational poem, which Shivani Thakur has written very beautiful and has also performed in the stage of ‘The Social House’
शब्दार्थ:
फबती कसना – चुभती हुई या व्यंग्यपूर्ण बात करना।
रब्त – लगाव, सम्बन्ध, रिश्ता, ताअल्लुक, मेल-जोल, दोस्ती ।
Musibat
मुसीबत ना झेली तो तूने क्या झेला
दुनिया के रेलम-रेल धक्के-पेल में तूने क्या झेला
कुछ तो होता तेरे पास
तो कहता उस मुकाम से होकर आया हूं
दुनिया को पीछे छोड़
मैं आगे निकल आया हूं
ठोकर लगी तो गिर पड़ा
उठ खड़ा हुआ आगे निकल चला
अगर ठोकर खाकर तू वापस मुड़ चला
तो तूने क्या झेला..
दुनिया ने फब्तियां कसी,
तेरा हौसला तोड़ा,
तूने अनसुना कर आगे बढ़ चला
अगर वो फब्तियां सुन तू वापस मुड़ चला
तो तूने क्या झेला…
कुछ तो होता तेरे पास,
तो कहता उस दौर से होकर आया हूं,
दुनिया को ठोकर मार मैं आगे निकल आया हूं,
कोशिश की तुझे रुलाने की दुनिया वालों ने बहुत,
अगर उनकी बातों पर हंसकर तू उन्हें ना रुलाया
तो तूने क्या झेला…
जिंदगी के बुरे वक्त में,
दुनिया के झूठे रब्त में,
अगर रगों में दौड़ रहे रक्त को
तू साबित न कर पाया
तो तूने क्या झेला…
बादल की उस गर्ज को,
पैसों की पड़ी उस अर्ज को,
और अपने को हुए मर्ज को
अगर तू हर्ज कर आया
तो तूने क्या झेला…
जिंदगी में मिली उस मार को,
बार बार मिली उस हार को,
ईश्वर के दिए मुसीबत के उपहार को
अगर तू इनकार कर आया
तो तूने क्या झेला…
तो तूने क्या झेला…
तुम्हारी झोली में वो सब है
जिसके लिए मजारों पर लोग दुआएं करते हैं
तुम कदर करना सीख लो यूं
ना बेरुखी दिखाओ,
जिन्दगी जीने के लिए कम पड़ जाती है अक्सर,
इसलिए रोना बंद करो!
और मुस्कुराओ।
– शिवानी ठाकुर