एक कविता – निराला को याद करते हुए | केदारनाथ सिंह
‘अकाल में सारस‘ केदार जी द्वारा लिखी गई एक काव्य संग्रह है जिसमें ये कविता ‘एक कविता – निराला को याद करते हुए‘ भी शामिल है।
एक कविता – निराला को याद करते हुए
उठता हाहाकार जिधर है
उसी तरफ अपना भी घर है
खुश हूँ – आती है रह-रहकर
जीने की सुगंध बह-बहकर
उसी ओर कुछ झुका-झुका-सा
सोच रहा हूँ रुका-रुका-सा
गोली दगे न हाथापाई
अपनी है यह अजब लड़ाई
रोज उसी दर्जी के घर तक
एक प्रश्न से सौ उत्तर तक
रोज कहीं टाँके पड़ते हैं
रोज उधड़ जाती है सीवन
‘दुखता रहता है अब जीवन’
– केदारनाथ सिंह
Uthata hahakaar jidhar hai
Usi taraf apna bhi ghar hai
Khush hoon – aati hai rah-rahkar
Jeene ki sugandh bah-bahkar
Usi or kuch jhuka-jhuka-sa
Soch raha hoon ruka-ruka-sa
Goli dage na hathapaai
Apni hai yah ajab ladai
Roz usi darzi ke ghar tak
Ek prashn se sau uttar tak
Roz kahin taanke padte hain
Roz udhad jaati hai seevan
‘Dukhta rahta hai ab jeevan’
– Kedarnath Singh