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लेखक – वसीम बरेलवी
किताब – मेरा क्या
प्रकाशन – परम्परा प्रकाशन, नई दिल्ली
संस्करण – 2007
Haal Dukh Dega Toh Maazi Pe..
हाल दुःख देगा तो माजी पे नज़र जायेगी
ज़िन्दगी हादसा बन बन कर गुज़र जायेगी
तुम किसी राह से आवाज़ न देना मुझ को
ज़िन्दगी इतने सहारे पे ठहर जायेगी
तेरे चेहरे की उदासी पे है दुनिया की नज़र
मेरे हालत पे अब किस की नज़र जायेगी
तुम जो ये मशवरा-ए-तर्क-ए-वफा देते हो
उम्र एक रात नहीं है जो गुज़र जायेगी
उनकी यादों का तसलसुल जो कहीं टूट गया
ज़िन्दगी तू मेरी नज़रों से उतर जायेगी
– वसीम बरेलवी
Haal dukh dega toh maazi pe nazar jaayegi
Zindagi hadsa ban ban kar gujar jaayegi
Tum kisi raah se aawaaj na dena mujh ko
Zindagi itne sahaare pe thahar jaayegi
Tere chehre ki udaasi pe hai duniya ki nazar
Mere haalat pe ab kis ki nazar jaayegi
Tum jo ye mashwara-e-tark-e-wafa dete ho
Umar ek raat nahin hai jo gujar jaayegi
Unki yaadon ka tasalsul jo kahin tut gaya
Zindagi tu meri nazaron se utar jaayegi.
– Waseem Barelvi