Usey Pasand Hai by Nidhi Narwal | Love Poetry | The Social House Poetry

Usey Pasand Hai Poem | Nidhi Narwal 

This Poem 'Usey Pasand Hai' is written and performed by Nidhi Narwal on the stage of The Social house.

  शब्दार्थ  
पायाब – कम गहरे

Usey Pasand Hai Poetry 

“दुपट्टा क्या अटका सांकल में 
कमबख्त लगा दर पर तुम खड़े हो।”

“कुछ जख्म़ अब पायाब है 
कुछ है अभी ताजे ही, 
खिड़कियों से तो अब भी झाकने आ जाता है वो
बंद दिखते हैं उसके बस दरवाजे।”

#Sher

इश्क़ से मिलकर देखा था 
जीना मोहाल कर गया, 
कुर्बत में लाश छोड़कर 
कब्र मिट्टी से भर गया।

#Sher

अब उससे बात नहीं करनी 
पर अब बात उसी की करनी है 
दिन दे दिया ऐ जिंदगी तुझे अपना
मगर रात उसी की करनी है 
अगर बख्शे मुफ्त में मुझे 
खुदा से एक हसरत ख़ास उसी की करनी है
मैं क्या करू इन दीवानो का
मुझे बदतमीजियां बस बर्दाश्त उसी की करनी है।

#Poem

बातें बेहिसाब बताना 
कुछ कहते-कहते ही चुप हो जाना 
उसे जताना उसे सुनाना 
वो कहता है उसे पसंद है….

ये निगाहें खुला मैखाना है 
वो कहता है दरबान बिठा लो, 
हल्का-सा बस हल्का-सा 
वो कहता है तुम काजल लगा लो ।
वैसे ये मेरा शौक नहीं 
पर हाँ उसे पसंद है….

दुपट्टा एक तरफ ही डाला है, 
उसने कहा था कि सूट सादा ही पहन लो 
बेशक तुम्हारी तो सूरत से उजाला है।
तुम्हारे होंठों के पास जो तिल काला है 
बताया था उसने उसे पसंद है….

वो मिलता है तो हँस देती हूँ 
चलते-चलते हाथ थामकर 
उससे बेपरवाह सब कहती हूं
और सोहबत में उसकी जब चलती है हवाएं 
मैं हवाओं सी मध्यम बहती हुं 
मन्नत पढ़कर नदी में पत्थर फेकना 
मेरा जाते-जाते यूं मुड़कर देखना 
और वो गुजरे जब इन गलियों से 
मेरा खिड़की से छत से छुपकर देखना
हाँ उसे पसंद है…. 

जुल्फों को खुला ही रख लेती हूँ 
उसके कुल्हड़ से चाय चख लेती हूं 
मैं मंदिर में सर जब ढक लेती हूँ 
वो कहता है उसे पसन्द हैं… 

ये झुमका उसकी पसंद का है 
और ये मुस्कराहट उसे पसंद है 
लोग पुछते है शबब मेरी अदाओं का 
मैं कहती हूं उसे पसंद हैं…।

                                                   – निधि नरवाल