Difficult Word:
कोर चश्मि – अंधापन
Aakhiri Kitaab
गौर से सुनना ग़ज़लें मेरी
अगर जानना है मुझे
मैं शायर हूँ
चेहरे से थोड़ा कम समझ में आता हूँ।
तेरे होंठों पे रखा होंठ तो ये मालूम हुआ
कि इश्क़ और शहद में ज़रा भी फर्क नहीं
मेरा तन महक जाए ऐसा इत्र ही कहा है यारो! उनके बदन की खुशबू शीशियों में कहाँ मिलती है।
कल कहा था तुमने बहुत थक गई हूँ मैं
अब अपने इश्क़ से रिहा कर दो मुझको
तो लो ये रहा मैं और ये मेरे खून के कतरे में बसी तुम
छान लो और ले जाओ समेट कर खुद को।
इश्क़ को इश्क़ रखता हूँ आँखों की कोर चश्मि नहीं करता
बात जो हो दिल में रखता हूँ मैं गले की तख्ती नहीं करता
इश्क़ इबादत होती है बुजुर्गों ने सिखाया था
यही बात है कि अकेला रहता हूँ
पर आशिक़ी सस्ती नहीं करता।
सुनो तुम वो आखिरी किताब ले जाओ ना
जब तुम थे तो ये किताब कुछ न बोलती थी
जब तुम थे तो ये किताब कुछ न बोलती थी
अब बंद अलमारी से मुझे झांकती रहती है
आते जाते कमरे में मुझे टोकती रहती है
मुझे रोकती रहती है
सुनो ना तुम ये आखिरी किताब वापस ले जाओ ना
इस किताब में मुझे तुम्हारी शक्ल दिखाई देती है
इसके हर पन्ने में मुझे तुम्हारी आवाज़ सुनाई देती है
इस किताब में तुम्हारा एहसास अब तक बाकी है
और इसे वापस ना ले जाना शायद तुम्हारी चालाकी है
सुनो ना तुम ये आखिरी किताब वापस ले जाओ ना
इस किताब के हर पन्ने ने तुम्हारे जीभ का स्वाद चखा है
सोते वक्त तुमने अक्सर इसे अपने सीने पे रखा है
तो अब ये किताब तुम्हारी खुशबू में डूब चुकी है पर सुनो ना ये खुशबूए है ना उलझने पैदा करती है
तो तुम ये किताब वापस ले जाओ ना
जब परेशान होकर मैं कमरे में भटकने लगती हूँ
फिर एक नज़र रुककर उस आलमारी को तकती हूँ
सैकड़ों किताबें हैं उसके अंदर
पर बस वो एक किताब मुझे रोकती नजर आती है
मुझे टोकती नजर आती है
तो सुनो ये जो किताब देकर तुम मेरा सुकून ले गए हों ना
मुझे मेरा सुकून लौटा जाओ ना
सुनो तुम ये आखिरी किताब ले जाओ ना
तुम ये आखिरी किताब ले जाओ ना।
– निरज निदान