एक दिन हँसी-हँसी में | केदारनाथ सिंह
‘अकाल में सारस‘ नामक कविता-संग्रह में संकलित यह हिन्दी कविता ‘एक दिन हँसी-हँसी में‘ केदारनाथ जी प्रसिद्ध कविताओं में से एक है।
एक दिन हँसी-हँसी में
एक दिन
हँसी-हँसी में
उसने पृथ्वी पर खींच दी
एक गोल-सी लकीर
और कहा – ‘यह तुम्हारा घर है’
मैंने कहा –
‘ठीक, अब मैं यहीं रहूँगा’
वर्षा
शीत
और घाम से बचकर
कुछ दिन मैं रहा
उसी घर में
इस बात को बहुत दिन हुए
लेकिन तब से वह घर
मेरे साथ-साथ है
मैंने आनेवाली ठंड के विरुद्ध
उसे एक हल्के रंगीन स्वेटर की तरह
पहन रखा है।
– केदारनाथ सिंह
Ek din
Hansi-hansi mein
Usne prithvi par khinch di
Ek gol-si lakeer
Aur kaha – ‘yah tumhara ghar hai’
Maine kaha –
‘Thik, ab main yahin rahunga’
Varsha
Shit
Aur ghaam se bachkar
Kuch din main raha
Usi ghar mein
Is baat ko bahut din hua
Lekin tab se wah ghar
Mere saath-saath hai
Maine aane wali thand ke viruddh
Use ek halke rangin swetar ki tarah
Pahan rakha hai.
– Kedarnath Singh