खर्राटे | केदारनाथ सिंह
‘खर्राटे‘ केदारनाथ सिंह जी द्वारा लिखी गई एक हिन्दी कविता है जो ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ‘ नामक काव्य संग्रह में सम्मिलित है। इस कविता में केदार जी ने अपने खर्राटे लेने का जिक्र किया है।
खर्राटे
मेरी आत्मा एक घर है
जहाँ अपने लंबे उदास खर्राटों के साथ
यह दुनिया सोती है
और मैं सोता हूँ उसके बाहर
मैदान में
और मैदान
चूँकि मैदान के बाहर कहीं जा नहीं सकता
इसलिए कँटीली झाड़ियों पर
टिका देता है सिर
और एक पत्थर जैसी गरिमा
और धैर्य के साथ
सहता है मेरे खर्राटों को
जिन्हें गिरगिट-झींगुर सब सुनते हैं
एक मुझे छोड़कर।
– केदारनाथ सिंह
Meri aatma ek ghar hai
Jahan apne lambe udaas kharraton ke saath
Yah duniya soti hai
Aur main sota hun uske baahar|
Maidaan mein
Aur maidaan
Chunki maidaan ke bahar kahin ja nahin sakta
Isliye katili jhaadiyon par
Tika deta hai sir
Aur ek patthar jaisi garima
Aur dhairy ke saath
Sahta hai mere kharraton ko
Jinhe girgit-jhingur sab sunte hain
Ek mujhe chhodkar.
– Kedarnath Singh