Main Insaan Poetry Lyrics | Rahul Solanki | The Social House Poetry

'Main Insaan' Poetry has written and performed by Rahul Solanki on The Social House's Plateform.

Main Insaan Poetry Lyrics

मैं मेरा नाम, मेरे नाम से आपको कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा
क्यों की आप लोगों ने मुझे कुछ नाम पहले से ही दे दिया है।
छक्का मीठा कलंक काफी सुना हुआ है ना
खैर फिर भी ये जो सभा लगी है तो 
मैं आपको अपने बारे में बता देता हूँ 
मैं इंसान हूं! नाम – राहुल,  उम्र – बीस साल, जाति – राष्ट्रपुत्र, धर्म – हिन्दू,  जेंडर – ….. 
माफ़ करना जेंडर हटा देते हैं
मैं इंसान, नाम – राहुल, उम्र – बीस साल, जाति – राजपुत्र, धर्म – हिन्दू,  शौक – कविताएं लिखना, लिपस्टिक लगाना, लड़कियों की तरह तैयार होना, माफ़ करना शौक कविताएं लिखना, लिपस्टिक लगाना, खुद की पसंद से तैयार होना। 
मुझे पता है मेरा लिपस्टिक लगाना, लड़कियों की तरह कपड़े पहनना, उनकी तरह दिखना, इन सबसे आपको दिक्कत हैं इन सबसे आपको एतराज है 
लेकिन मैं आपको बता दूं की ये मेरी पसंद है
और यहाँ पर सबसे जरूरी बात ‘मैं इंसान हूं’।
मैने देखा है आपको मुझे बार बार मुड़कर देखते हुए 
मेरी तरफ ऊँगली करके अपने दोस्तों से बात करते हुए 
मुझसे सटकर चलते हुए, दूर हटकर चलते हुए
मुझे अपने से अलग मानते हुए 
मुझे समाज का हिस्सा ना समझते हुए 
लेकिन फिर भी सबसे ज़रूरी बात ‘मैं इंसान हूं’।
अपने बच्चो को हम से दूर रखने के लिए हमें जिम्मेदार ठहराया जाता है 
हमारे चंद हक हमसे छीनने के लिए हमें जिम्मेदार ठहराया जाता है 
यहाँ तक कि हमारा बलात्कार भी हो जाए ना तो भी हमें जिम्मेदार ठहरा जाता है।
लेकिन क्यों..?? क्योंकि मैं ट्रांस हूँ, किन्नर हूँ या आपके शब्दों में कहुं छक्का हुं 
फिर भी सबसे ज़रूरी बात ‘मैं इंसान हूं’। 
बुरा लगता है जब खुद की हंसी उड़ते देखना पड़ता हैं
लोग खल्ली उड़ा रहे होते हैं 
मुझे हिकारत से देख रहे होते हैं
हारा हुआ सा महसूस हो रहा होता है
यकीन टूट रहा होता है
क्योंकि सबसे ज़रूरी बात ‘मैं इंसान हूं’।
तो ये कहानी यहीं तक ऐसे ही हम लड़ रहे है, जुझ रहे है अपनी पहचान के लिए, अपने अस्तित्व के लिए 
लेकिन सबसे जरूरी सवाल आपसे 
क्या ये सब करने के बाद आप इंसान??
मैं चाहता तो इन शब्दों को थोड़ा सहेज कर, 
एक सुन्दर सी कविता बनाकर आपके सामने पेश कर सकता था 
लेकिन बस अब और नही
अब और झूठ नहीं 
हाँ मुझे भी बुरा लगता है मेरी भी ख्वाइशों का दम घुटता है 
मैं रोता हूँ और रात हारता हूँ गिरता हूँ और फिर खड़ा हो उठता हूं 
इस उम्मीद में कि शायद कल बेहतर होगा 
और दुनिया तो उम्मीद पर ही टिकी है 
और इस दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा ‘मैं इन्सान हूं’
आप कहते है ना की जब एक दरवाजा बंद हो जाता है तो दुसरा दरवाजा खोल देता है भगवान,
तो मै आपको बता दूँ की हमारे मुँह पर तो गाड़ियों के खिड़कियों के शीशे ही बंद हो जाते हैं
आप कहते हैं की‌ मेरी दुआओं में बड़ी ताकत है
अगर ऐसा होता ना तो दुआ मैं सबसे पहले अपने लिए ही मांगता
क्योंकि थोड़ा मतलबी ही सही लेकिन ‘मैं इन्सान हूं’!
वो चार दिवारे और एक छत तो मेरे पास भी है
लेकिन जहां सुकून नहीं उसे घर नहीं कहते
तो वो कहावत तो आपने सुनी ही होगी की जहां सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते 
तो चाहे भूला केह लो  या बेवकूफ केह लो 
बस एक घर दे दो 
जहां मुझसे नफरत नहीं 
जहाँ मै अलग नही 
ऐसे ही एक छोटे से आशियाने को तलाशता मैं इंसान 
तो जब मैं यहाँ से वापिस आपकी तरफ को आऊंगा 
तो शायद आप तालियां बजाकर मेरा स्वागत करेंगे 
तो मैं आपको बता दूँ की तालियां बजाते हुए आप इंसान और तालियां बजाता हुआ मैं इंसान। 
                                     – Rahul Solanki