Puchhna Unse
हजार रंग लग चुके हैं मेरे जिस्म-ए-खराब पर
तुम अब आए हो
न जाने कितनी होलियों के बाद
और कोई तेरा इंतज़ार कब तक करें
अपने दिल को तार तार कब तक करें
रुह को रूह की आदत थी
जिस्मों का कारोबार कोई कब तक करें।
कुछ इंतकाम यूं भी लिए जाएंगे,
खत लिखे जाएंगे, लिख के जला दिए जायेंगे
जब सब कुछ टूट जाए जिसकों बनाया था तुमने
तब अपने ख्वाबों की चादर को फैलाना
जो बड़ा हो दिन और रात दोनों के वजूद से
आवाज़ देना वहाँ, जहाँ से वक़्त पैदा होता है
उन सारी रूहों को जिन्हें
नाइंसाफी के बगावत में मारा गया
दुनिया-ए-फा़नी के उस पहले शायर की कब्र पर जाना
जिसने इश्क़ को खुदा लिखा, मारा गया
जिसकी मोहब्बत अधूरी रही
सच और झूट दोनों को तलब करना
पूछना उनसे हकीकत उन अदालती कारोबार का
जहाँ सच बेचा गया चंद सिक्कों में अमीरों के हाथ
गिरेबान थाम ना ले, ऐ दुनिया का
जिसने अभी तक माफी नहीं मांगी उस पहले कत्ल की
जिसमें तय हुआ कि इंसानी सभ्यता के मजबूत लोग
कत्ल कर सकते हैं तरक्की के लिए
उन लोगों का जो कमजोर है,
जिनके बेजान हड्डियों से बनाए जाएंगे संसद भवन,
तिजारती इमारतें और उन महजबों के खुदा
जो कहेंगे जन्नत मिलेंगी मगर मरने के बाद।
कोई तेरी आँखों की उदासी क्यों देखें
इश्क़ देखें या इश्क़ की तबाही देखें
जब याद के सारे जख्म़ मिटा दिए हमने
तुमने फिर से मेरा हाल-ए-दिल क्यों पुछा?
तुमने फिर से मेरा हाल-ए-दिल क्यों पुछा??
और आखिर में बस एक बात कहना चाहूंगा की नफरत कीजिए, भरपूर कीजिए! यहां जंग का माहौल होता है अपने देश में, कई मस्जिदों में लोगों को गोली मार दी जाती है… कीजिए नफरत! पर उससे पहले मोहब्बत करना सीखिए.. ताकि अगर नफरत करे भी तो उतने ही सलीके और तमीज़ से कर पाये..!
शुक्रिया!!
– हमिद