Toh Tumhe Jung Chahiye
तो तुम जंग चाहते थे
ख्याल अच्छा है
क्या हम जवाब भी नही देंगे इस बार
हुकूमत से तुमने किया ये सवाल अच्छा था
क्या है ना हर बार हम बड़ी नरमी से पेश आएं है
तो इस बार तुम जवाब में गलत तेवर एक अलग ढंग चाहते थें
शहीदों की शहादत का यही तो एक सिला है तो लाजीम है सही भी था कि तुम जंग चाहते थे
शहीद….?
हां ये वो नाम है जो किसी बड़ी खबर के बाद एक बड़ी लिस्ट के जरिए हमारे सामने आते हैं
यह वो फरिश्ते हैं जो रिश्तो की दीवारें लांग कर सरहद को थामने जाते हैं
शहीद महज़ एक सिपाही ही नहीं
एक अपने वालिद का सपना, बहन की राखी, बिटिया की ज़िद होता है
जिस भरोसे तुम और मैं महफूज सो जाते हैं
वो भरोसा वो उम्मीद होता है
शायद तुम्हें अंदाजा नही है की
जब वो जनाजा घर लौटता है मोहल्ले से होकर
तो और कौन शहीद होता है
शहीद वो गोंद जिससे बढ़कर है इस दुनिया में कोई शय नहीं
वो मां जिसे यकीन नहीं होता की छुट्टियां लेकर ‘आने वाला’ आने वाला है ही नहीं
शहीद वो वालिद वो बूढ़े बाबा जिनके लिए
कहने को लफ्ज़ होते तो हम कह देते
न जाने कौन सा हौसला दिल में रख कर
कहा था कि एक और बेटा होता तो दे देते…
शहीद वो बेवा जो बार बार सफेद चादर हटा कर देखती है कि
ये चेहरा ये मंजर देखने को कब और कैसे मिलेगा
और कुछ दिनों बाद की जद्दोजहद के मुआवजा कब आएगा??
घर कैसे चलेगा?
5 साल का सुमित जिसकी आंखे
अब भी उन्हीं दरवाजों पर इन्तजार में है
वो बस इसी बात पर उछल पड़ा था कि
पिताजी की तस्वीर अखबार में है
छोटी नफीसा जिसकी आंखों में
अब नींद और सपने सलोने नहीं होंगे
वो सारे बक्से को खंगालेगी
जिसमें वर्दी तो होगी पर खिलौने नहीं होंगे
शहीद वो मोहल्ला जो ऐसे वक्त पर था उसके साथ खड़ा हुआ
शहीद वो रास्ता जिस पर दौड़कर वो बड़ा हुआ शहीद वो शहर जहां लौट आने का बहाना जाएगा हर वो नुक्कड़ हर चौराहा जो उसके नाम से पहचाना जाएगा
शहीद उस मुल्क की सरजमीं जिसके मिट्टी से उसके जिस्म का था हर जिगरा सिमट गया
शहीद उस मुल्क का परचम
जो आखिरी सफर में उसके जनाजे से था लिपट गया
शहीद उसकी ख्वाहिशे, उसके ख्वाब होते हैं
तब कहीं जा कर थोड़ा बहुत शहीद मैं और आप होते हैं
ना रोका गया ये फितूर तो ये मंजर हर तरफ ही होगा
जो हाल शहीदो का इस तरफ हुआ
वो उस तरफ भी होगा
पर तुमने तो सड़कों पर बिखरा लाल रंग देखा था ना
तो तुम बदले में देखना वैसा ही रंग चाहते थे
और कभी वक्त मिले तो सोचना
सवाल खुद से पूछना
क्यों लाज़िम था?
आखिर क्यों?? तुम जंग चाहते थे?
– राकेश तिवारी