Description:
Written By – Daaniyal
Produced By – Spill Poetry
‘Mere Sheher Mein’ is a poem dedicated to the silent strugglers of a city, it is dedicated to those faces which we see daily, but not the stories written on them
Mere Sheher Mein Poetry
मेरे शहर में कुछ लोग उठते हैं हर सुबह,
उठते हैं अपने सपनों को बहला-फुसलाकर सुला कर
अपना बस्ता सीने से लगा कर
बस्ता, जो मजबूरीयो से भरा होता है
बस्ता, जो ख्वाबो से भरा होता है
मेरे शहर में कुछ लोग उठते हैं हर सुबह…..
उनकी जरूरते आगे आगे भागती है
और वो खुद पीछे पीछे चलते है
पाहिजो के ऊपर वक्त लगा होता है
उनके..
उनके सूरज प्लेटफार्म्स पर ढलते हैं
मेरे शहर में कुछ लोग उठते हैं हर सुबह….
इनकी झोली अरमानों से खाली होती है
मुस्कुराहट खुद्दार और आंखें फिर भी सवाली होती है
चेहरे पर जिनके फ्रिक की लाली होती है
फिक्र जो बाबा की दवाई के बिल पर चढ़ के आवाज लगाती है
फिक्र जो बिटिया की स्कूल की फीस भरने की आश लगाती हैं
फ़िक्र जो उनके दिनों को रातो से मिलवाती है
फ़िक्र की ज़ैद के दोस्त इस बार भी उससे ईद पर ये ना पूछे
कि तेरी अम्मी तुझे नये कपड़े क्यों नहीं सिलवाती है
मेरे शहर में कुछ लोग उठते है हर सुबह….
जिनके दिलों पर कुछ ना कर पाने का घाव होता है
उनके चेहरों पर हर वक्त बस एक ही भाव होता है
जैसे अभी अभी उनका कोई सपना टूटा हो
जैसे अभी अभी उनसे कोई अपना छुटा हो
मेरे शहर में कुछ लोग उठते हैं हर सुबह…
कुछ पाकर खुद को खोने के लिए
एक रोटी, एक छत और बिछौने के लिए
जहां आंसूए निकले तो राज बन जाए
ऐसे सुखे अंधेरे कोने के लिए
मेरे शहर में कुछ लोग उठते हैं हर सुबह
खुली आंखों से सोने के लिए
मेरे शहर में कुछ लोग….
–Daaniyal