Tum Chale Gaye Poetry Lyrics | Manveen Kaur | The Social House Poetry

'Tum Chale Gaye' Poetry has written and performed by Manveen Kaur on The Social House's Platform.

Tum Chale Gaye 

जिंदगी के पन्ने कुछ यूं भरते गए
कुछ पल ढ़ेर सी खुशियां लाए 
और कुछ आंखें नम करते गए 
कुछ पल में जिंदगी से प्यार करवा दिया
और कुछ मौत को करीब लाने की साजिश करते गए
कुछ लोग बस गए दिल में इत्र की
महक की तरह 
और कुछ मन से बेकदर उतरते गए
हाल क्या बताएं बेवफाई का 
अपने अपनों को ही पराया करते गए 
और फिर हर महफिल में हमारी रुसवाई करते गए
तुम चले गए पर यादें छोड़ गए 
जो करनी थी तुमसे अधूरी वो बातें छोड़ गए 
बता दिया होता अगर जाना ही था 
मेरा दिल क्यों यूं दुखाना ही था 
ना जाने क्यों जिंदा है वो आज भी सारे 
उन हसीन लम्हों में किए जो वादे तोड़ गए
एक अरसे बाद मुलाकात तुमसे हुई थी
आंखों के दरमियां फिर से बात कुछ हुई थी 
रात का अंधेरा मानो जिंदगी बता रहा था 
कुछ तो था जो मुझे अब भी सता रहा था 
चांद की मुस्कुराहट नशीली थी
तुम्हारी आंखें हुई अब गीली थी 
सोचा पी लूं वो फिसलती बूंदे फिर
पर झूठ बोलना अब भी वो कहां भूली थी
मुझे यूं ही जज्बातों में बंद रहने दो 
तन्हाई के समंदर में बहने दो 
गिरने दो वो दर्द की बूंदे आंखों से मेरी 
मुझे चुप रहकर भी सब कुछ कहने दो 
मुझे यूं ही जज्बातों में बंद रहने दो 
जकड़ने दो उन लम्हों को मुझे 
जो पड़ गए अब काले हैं 
मैंने संजोकर रखा था उन्हें बड़े लाडो से वो पाले हैं 
सिमटने दो मुझे उस चादर में जो अब भी खुशबू उसकी फैलाती है 
सारी बातें उसकी कही याद है मुझे 
मेरे दिल को अब वो सेहलाती हैं
रातें अंधेरी पसंद है मुझको 
चांद नहीं नजर आता अब 
सुबह की रोशनी खाती है आंखों को मेरी
पहले सा खुश नहीं रहा जाता अब
मुझसे पूछो ना हाल मेरा 
मेरे जख्मों को दर्द थोड़ा सहने दो 
मुझे यूं ही चुप रहकर सब कुछ कहने दो 
मुझे जज्बातों में बंद रहने दो।
                                          – मनवीन कौर