Dobara Mohabbat Ki Maine Lyrics Poetry | Priya Pareek | The Social House Poetry

This beautiful poetry 'Dobara Mohabbat Ki Maine' has written and performed by Priya Pareek on The Social House's Plateform.

Dobara Mohabbat Ki Maine

बेवफा इश्क़ के दर्द को कुछ ऐसे तबाह किया
दोबारा मोहब्बत की मैंने फिर दोनों को भुला दिया
अब ना इसका, ना उसका, ना गम किसी का है
इतने तन्हां है तो भी हर पल खुशी का है
लोहे से लोहा, हीरे से हीरा, इश्क़ से इश्क़ मारकर
कुछ पतंगे आजाद उड़ रही है, कुछ पतंगों को काटकर
वो जो फकीर से थे कल, अब नवाब से चलते हैं
ये कैसे भूल गए चिराग बुझाने वाले कि सूरज भी ढलते हैं
आजाद पंछी रहा इश्क, कब किस की हदों में है
वो जो इश्क़ की आजमाइश किया करते थे
आज खुद सजदों में है
कल तक नजरें चुराने वाले आज सवाल पूछते हैं
जिन्हें शिकायत हुआ करती थी, आज मेरा हाल पूछते हैं
जब हौसला ना तोड़ पाए ज़ख़्म कुरेदने वाले
तो क्या है मेरे दिल को मलाल, पुछते है
कितनी हवाओं से लड़कर कितने चराग बुझे
मेरे अश्कों का मजाक उड़ाने वाले मेरी खुशी से जल उठे।
मोहब्बत के सिवा भी है कई मसले जिनका जिक्र
जरूरी है
गिला-ए-गर्दिश-ए-अय्याम से पहले खुशी की फिक्र जरूरी है
घुट-घुट कर यूं जीने की मजबूरी क्या है?
हंस कर देख तेरी खुशी से और जरूरी क्या है
जब भी मैंने खुश हो कर देखा
तो गम सारे ही मेरी खुशी से अक्सर हार जाते हैं
हंस देती हूं मैं ये आंसू बेकार जाते हैं
हर शक्स जो तुझे जानने का दावा करता है
तुझ से अनजान है
तू खुद को क्या समझता है 
बस वहीं तेरी सही पहचान है
                                           – Priya Pareek