Sahi Aur Galat Poetry – Sainee Raj | UnErase Poetry

This beautiful Poetry 'Sahi Aur Galat'  has written and performed by Sainee Raj. Shot at held on The Cuckoo Club Bandra.

This beautiful Poetry ‘Sahi Aur Galat‘  has written and performed by Sainee Raj. Shot at held on The Cuckoo Club Bandra.




Sahi Aur Galat

सही और गलत का फैसला आखिर कौन करता है 
मेरी कमीज का रंग किसी के लिए सही होगा 
तो मेरा पहनावा किसी के लिए गलत 
किसी के लिए मेरी चमड़ी सांवली होगी 
तो किसी के लिए मेरा मुंह काला 
ये सही और गलत के बीच में क्या है
जो ना ही सही है और ना ही गलत
और सही नहीं है तो क्यों नहीं है?? 
और गलत है तो
 सही क्यों लगता है?? 
ये सही और गलत का फैसला आखिर कौन करता है

किसी को ख्यालों में बसाना सही है क्या 
अगर बाहों में कोई और हो 
और जो बाहों में है वो सही नहीं 
तो जो ख्यालों में है वो, गलत कैसे??
अगर आपका दिल किसी को बार-बार पुकारे 
जिसे पुकारना नापाक हो
तो क्या ये गलत होगा कि वो सामने आ जाए 
तो उसे अनदेखा करना ना गवार हो
और वो सामने है तो क्यों है 
क्या उसे पल भर के लिए देख लेना भी सही नहीं
और गलत है तो सही क्या है 
ये सही और गलत का फैसला आखिर कौन करता है?





अगर चोरी करने की सजा मिलती है 
तो दिल दुखाने की सजा भी तो मिलनी चाहिए
अगर अदालतों में घर तोड़ने की सुनवाई की जाती है 
तो घर तबाह करने की सजा भी तो मिलनी चाहिए 
अगर अपने जेबों को पैसों से भरना गलत है 
तो किसी एक इंसान को देवता जैसे पूजना सही है क्या?
अगर सियासत के नाम पर जंग करवाना सही है
तो देश बेचने वालों को गलत कहना ग़लत क्यों?
और अगर धर्म के नाम पर बंटवारा करवाना सही है 
तो आजादी के नाम पर नारे लगाना गलत क्यों?
किसी एक इंसान से दिल खोलकर प्यार करना सही है 
तो जब वो किसी और से करता है तो मुझे सही क्यों नहीं लगता 
और वो सही है तो मैं गलत क्यों?
ये सही और गलत के बीच में कुछ होता भी है क्या?? 
जब रात की लोकल धीमे कदमों से अंधेरी स्टेशन पर आती है 
तो सारी औरतें उस पर लपक जाती हैं 
एक ही डिब्बा नसीब होता है औरतों को 11:00 बजे के बाद 
उस एक डिब्बे में सारी औरतें चढ़ जाती है 
मैंने पूछा है कई दफे Twitter पर Officials से,
आपको क्या लगता है? औरतें 11:00 बजे के बाद घर से बाहर नहीं निकलती? 
इसीलिए लाद देते हैं उन्हें बोरियों की तरह एक दूसरे के ऊपर। 
या आप सोचते हैं कि औरतों को घर से निकलना ही नहीं चाहिए?
जवाब के नाम पर आई कुछ रिट्वीट, कुछ भारी भरकम misogyny और एक लंबी चुप्पी।
उस चुप्पी का शोर आज तक गूंजता है संडे की दोपहर वाली खाली डिब्बे में 
अगर औरत की हिफाज़त करना जरूरी नहीं 
तो औरत का आवाज उठाना गलत है क्या? 
अगर निर्भय होकर मरना गलत है 
तो घुट घुट कर जीना सही होगा क्या?
पर फिर रात की लोकल ट्रेन है तो अपने साथ ढेर
सारा समय लाती है 
तो एक हाथ यहां एक टांग वहां टीका कर सपने देखने का वक्त मिल ही जाता है
क्योंकि क्या है ना सपनों के तो पर
होते हैं
आप खुद को चाहे जितना जकड़ ले, सपने तो आजाद है 





फोटो पर उसके होठों का सपना देखना गलत है क्या 
बीच रात उसके छुअन की वाहिमा करना सही क्यों नहीं
अगर किसी एक इंसान से तमाम उम्र प्यार करना सही है 
तो अमृता का प्यार साहिर के लिए गलत था 
और अगर किसी एक इंसान के आरजू में तड़पना गलत है 
तो इमरोज का प्यार अमृता के लिए गलत था क्या 
अगर खुदगर्जी प्यार को ख़त्म करती है तो उसे पैदा क्या करता है 
अगर ये दुनिया, दुनिया वालों के हिसाब से चलती है 
तो हर रोज एक मजनू क्यों मरता है 
अगर इश्क़ इबादत है तो धर्म के नाम पर क्यों बटता है 
और अगर सुकून ही चाहिए तो उससे मिलने को दिल बार-बार क्यों करता है
ये सही और गलत, गलत और सही इसका फैसला आखिर कौन कर सकता है??
                                         – Sainee Raj