Difficult Words
बेरिदा = घूंघट के बिना।
शबाहत = रूप, आकृति, सूरत।
यकसर = अकेला, इकट्ठा, कुल।
कुर्बत = निकटता, आसपास
लम्स = स्पर्श, छूना, मैथुन, सहवास।
सूबे = प्रांतों।
अजल = वह समय जब सृष्टि की रचना हुई।
मिल्कियत = ज़मींदारी, जाग़ीर।
इस्म-ओ-जिस्म = नाम और शरीर।
बाहम = आपस में, परस्पर।
मुनाफ़िक़ = एक पाखंडी।
पुर-कशिश = आकर्षक, मोहक।
मुकर्रर = निश्चित, स्वीकृत, नियुक्ति, स्थापना।
हजीमत = पराजय, हार, शिकस्त।
पश्तो = एक प्राचीन आर्यभाषा जो भारत की पश्चिमोत्तर से लेकर अफगानिस्तान तक बोली जाती है।
मनसब = ओहदा, पद, अधिकार, कर्तव्य, कर्म।
रौ = प्रवाह, लय।
सर्वत = धन, संपन्नता, एक महान संख्या, एक भीड़, शक्ति, अधिकार, प्रभाव।
ममनूअ = वर्जित, मना किया हुआ।
हुस्न-ए-सुखन = शब्दों की सुंदरता।
बलवे = उपद्रव, दंगा, विद्रोह, अशांति।
तूर-ए-सीना = सीनाई पर्वत जिसे अरबी में ‘तूर सीना’ या जबल मूसा ( मूसा का पर्वत) कहते हैं।
दिल-ए-दरवेश = तपस्वी हृदय।
अलस्त = सृष्टि का निर्माण।
परस्त = पूजनेवाला।
अहसन = अति उत्तम, बहुत उम्दा, अति सुंदर।
माँ-जाये = भाई।
मावरा = परे, इसके अलावा।
Ali Zaryoun Best Poetry
जागना और जगा के सो जाना
रात को दिन बना के सो जाना
Text करना तमाम रात उसको,
उंगलियों को दबा के सो जाना
आज फिर देर से घर आया हूं
आज फिर मुंह बना के सो जाना
खयाल में भी उसे बेरिदा नहीं किया है
ये जुल्म मुझसे नहीं हो सका, नहीं किया है
मैं एक शख्स को ईमान जानता हूं तो क्या
खुदा के नाम पे लोगों ने क्या नहीं किया है इसीलिए तो मैं रोया नहीं बिछड़ते समय
तुझे रवाना किया है जुदा नहीं किया है
यह बदतमीज अगर तुझ से डर रहे हैं तो फिर,
तुझे बिगाड़ के मैंने बुरा नहीं किया है
सब कर लेना लम्हें जाया मत करना
गलत जगह पर जज्बे जाया मत करना
इश्क़ तो नियत की सच्चाई देखता है
दिल ना दुखे तो सजदे जाया मत करना
सादा हूं और ब्रैंड्स पसंद नहीं मुझ को
मुझ पर अपने पैसे जाया मत करना
रोजी-रोटी देश में भी मिल सकती है
दूर भेज के रिश्ते जाया मत करना
अरे क्या सीख सकोगें भला हिजरत से हमारी
तुम लोग मजा लेते हो हालत से हमारी
हम कौन हैं ये बात तुम्हें लिख के बताएं
अंदाजा नहीं होता शबाहत से हमारी
बेसुध नहीं राएगा हो जाना हमारा
कुछ फूल खिले हैं तो मुशक्तत से हमारी
इस तरह से ना आजमाओ मुझे
उसकी तस्वीर मत दिखाओ मुझे
ऐन मुमकिन है मैं पलट आऊं
उसकी आवाज में बुलाओ मुझे
मैंने बोला था याद मत आना
झूठ बोला था, याद आओ मुझे
प्यार में जिस्म को यकसर न मिटा जाने दे !
कुर्बत-ए-लम्स को गाली ना बना जाने दे !!
तू जो हर रोज़ नए हुस्न पे मर जाता है !
तू बताएगा मुझे ‘इश्क़ है क्या’? जाने दे !!
चाय पीते हैं कहीं बैठ के दोनों भाई !
जा चुकी है ना तो बस छोड़ चल आ जाने दे !!
हालत जो हमारी है तुम्हारी तो नहीं है
ऐसा है तो फिर ये कोई यारी तो नहीं है
तनहा ही सही लड़ तो रही है वो अकेली
बस थक के गिरी है अभी हारी तो नहीं है
ये तू जो मोहब्बत में सिला मांग रहा है
ऐ शख्स तू अंदर से भिखारी तो नहीं है
जितनी भी कमा ली हो बना ली हो ये दुनिया दुनिया है तो फिर दोस्त तुम्हारी तो नहीं है
नेकिया और भलाईया मौला
सब के सब खुदनुमाईया मौला
अपनी कोई दुकानदारी नहीं
अपनी कैसी कमाईयाँ मौला,
एक शरारत भरा सवाल करूं
औरतें क्यों बनाईया मौला
खुदा बंदा तने तन्हा गया है
सूबे दरिया मेरा प्यासा गया है्
अजल से लेकर अब तक औरतों को
सिवाय जिस्म क्या समझा गया है।
खुदा की शायरी होती है औरत
जिसे पैरों तले रौंदा गया है
तुम्हें दिल के चले जाने पे क्या गम
तुम्हारा कौन सा अपना गया है
चादर की इज्जत करता हूं और पर्दे को मानता हूं हर पर्दा पर्दा नहीं होता इतना मैं भी जानता हूं
सारे मर्द एक जैसे हैं तुमने कैसे कह डाला
मैं भी तो एक मर्द हूं तुमको खुद से बेहतर मानता हूं
मैंने उससे प्यार किया है मिल्कियत का दावा नहीं
वो जिसके भी साथ है मैं उसको भी अपना मानता हूं
चादर की इज्जत करता हूं और पर्दे को मानता हूं हर पर्दा पर्दा नहीं होता इतना मैं भी जानता हूं
कोई दिक्कत नहीं है अगर तुम्हें उलझा सा लगता हूं
मैं पहली मर्तबा मिलने में सबको ऐसा लगता हूं जरूरी तो नहीं हम साथ हैं तो कोई चक्कर हो
वो मेरे दोस्त है और मैं उसे बस अच्छा लगता हूं
मैं सोचता हूं न जाने कहां से आ गए हैं
हमारे बीच जमाने कहां से आ गए हैं
मैं शहर वाला सही, तू तो गांवजादी है
तुझे बहाने बनाने कहां से आ गए है
मेरे वतन तेरे चेहरे को नोचने वाले
ये कौन है ये घराने कहां से आ गए हैं
जो इस्म-ओ-जिस्म को बाहम निभाने वाला नही
मैं ऐसे इश्क़ पर ईमान लाने वाला नहीं
मैं पांव धोके पियूं, यार बनके जो आए
मुनाफ़िक़ों को तो मैं मुंह लगाने वाला नहीं
बस इतना जान ले ऐ पुर-कशिश के दिल तुझसे
बहल तो सकता है पर तुझ पे आने वाला नहीं
तुझे किसी ने गलत कह दिया मेरे बारे
नहीं मियां मैं दिलों को दुखाने वाला नहीं
सुन ऐ काबिला-ए-कुफी-दिलाँ मुकर्रर सुन
अली कभी भी हजीमत उठाने वाला नहीं
गुल-ए-शबाब महकता है और बुलाता है
मेरी ग़ज़ल कोई पश्तो में गुनगुनाता है
अजीब तौर है उसके मिजाज-ए-शाही का
लड़े किसी से भी, आंखें मुझे दिखाता है
तुम उसका हाथ झटक कर ये क्यों नहीं कहतीं
तू जानवर है जो औरत पे हाथ उठाता है
चमकते दिन बहुत चालाक है शब जानती है
उसे पहले नहीं मालूम था अब जानती है
ये रिश्तेदार उसको इसलिए झुठला रहे हैं
वो रिश्ता मांगने वालों का मतलब जानती है
जो दुख उसने सहे हैं उसकी बेटी तो ना देखे
वो मां है और मां होने का मनसब जानती है
ये अगली रौ में बैठी मुझसे सर्वत सुनने वाली
मैं उसके वास्ते आया हूं ये सब जानती हैं
यार तो उसके सालगिराह पर क्या क्या तोहफें लाए हैं
और इधर हमने उसकी तस्वीर को शेर सुनाएं हैं
आप से बढ़कर कौन समझ सकता है रंग और खुशबू को
आपसे कोई बहस नहीं है आप उसके हमसाएं है
किसी बहाने से उसकी नाराजी खत्म तो करनी थी
उसके पसंदीदा शायर के शेर उसे भिजवाए हैं
तुम सर्वत को पढ़ती हो
कितनी अच्छी लड़की हो
बात नहीं सुनती हो क्यूँ
ग़ज़लें भी तो सुनती हो
क्या रिश्ता है शामों से
सूरज की क्या लगती हो
लोग नहीं डरते रब से
तुम लोगों से डरती हो
मैं तो जीता हूँ तुम में
तुम क्यूँ मुझ पे मरती हो
आदम और सुधर जाए
तुम भी हद ही करती हो
मैं जन्नत से निकला था
और तुम मुझसे निकली हो
किस ने जींस करी ममनूअ’
पहनो अच्छी लगती हो
बात मुकद्दर की है सारी
वक्त का लिक्खा मारता है
कुछ सजदों में मर जाते हैं कुछ को सजदा मारता है
सिर्फ हम ही हैं जो तुझ पर पूरे के पूरे मरते हैं
वरना किसी को तेरी आंखें, किसी को लहज़ा मारता है
दिलवाले एक दूजे की इमदाद को खुद मर जाते हैं
दुनियादार को जब भी मारे दुनियावाला मारता है
शहर में एक नए कातिल के हुस्न-ए-सुखन के बलवे हैं
उससे बच के रहना शेर सुना के बंदा मारता है
मन जिस का मौला होता है
वो बिल्कुल मुझ सा होता है
तुम मुझको अपना कहते हो
कह लेने से क्या होता है
अच्छी लड़की ज़िद नहीं करते
देखो इश्क़ बुरा होता है
आँखें हंस कर पूछ रही हैं
नींद आने से क्या होता है
मिट्टी की इज़्ज़त होती है
पानी का चर्चा होता है
मरने में कोई बहस ना करना
मर जाना अच्छा होता है
तूर-ए-सीना है सर करोगे मियां
अपने अंदर सफर करोगे मियां
तुम हमें रोज याद करते हो
फिर तो तुम उम्र भर करोगे मियां
वो जो इक लफ्ज़ मर गया है
उसको किसकी खबर करोगे मियां
और दिल-ए-दरवेश एक मदीना है
तुम मदीने में सैर करोगे मियां
मैं इश्क अलस्त परस्त हूं
खोलूं रूहों के भेद
मेरा नाम सुनहरा सांवरा
एक सुंदरता का वेद
मैं खुरचु नाखुने शौक से
एक शब्द भरी दीवार
वो शब्द भरी दीवार है
ये रंग सजा संसार
है 114 सूरते बस इक सूरत का नूर
वो सूरत सोने यार की
जो अहसन और भरपूर
मन मुक्त हुआ हर लोभ से
अब क्या चिंता क्या दुख
रहे हरदम यार निगाह में
मेरे नैनन सुख ही सुख
ये पेड़, परिंदे, तितलियां
मेरी रूह के साए हैं
ये जितने घायल लोग हैं
मेरे माँ-जाये है
मेरी आंख कलंदर कादरी
मेरा सीना है बगदाद
मेरा माथा दिन अजमेर का
दिल पाक पतन आबाद
मैं अब अपना अवतार हूं
मैं अब अपनी पहचान
मैं दिन धर्म से मावरा
मैं हूं हजरत इन्सान
please include tehzeeb hafi