Dard Seene Mein Chhupaye Rakha
उधर है शाम जमीं आसमां मिलाए हुए
इधर मैं याद को तेरी गले लगाए हुए
हुई जो रात तो कपड़े बदल के आ बैठे
तमाम दिन के उजाले थके थकाए हुए
इल्म जब होगा किधर जाना है
हाय तब तक तो गुजर जाना है
इश्क़ कहता है भटकते रहिए
और तुम कहते हो घर जाना है
इश्क़ एक लम्हें में सदियां जीना
इश्क़ एक लम्हें में मर जाना है
दर्द सीने में छुपाए रखा
हमने माहौल बनाए रखा
मौत आई थी कई दिन पहले
उसको बातों में लगाए रखा
थे भटकने के बहुत अंदेशे
इश्क़ ने हमको बचाए रखा
मसाला तो इश्क का है, जिंदगानी का नहीं
यूं समझिए प्यास का शिकवा है, पानी का नहीं
क्या सितम है वक्त का इस दौर का हर आदमी,
है तो एक किरदार पर अपनी कहानी का नहीं।
अनसुना करने से पहले सोच लो तुम एक बार
खामोशी का शोर है ये, बेजुबानी का नहीं
जब अपनी बेकली से, बेखुदी से कुछ नहीं होता
पुकारे क्यों किसी को हम,
किसी से कुछ नहीं होता
कोई जब शहर से जाए तो रौनक रूठ जाती है
तो किसी की शहर में मौजूदगी से कुछ नहीं होता
चमक चमक यूं ही नहीं पैदा हुई है मेरी जान तुझ में
न कहना फिर कभी तू, बेरुखी से कुछ नहीं होता
जो बात खास है वो खुद को भी बताऊं नहीं
मैं लुत्फ़ लेता रहूं और मुस्कुराऊं नहीं
उसे सताने का बस एक यही तरीका है
उसके दिल में रहूं और समझ में आंऊ नहीं
अगर करीने से रख दूं कभी कोई सामान
तो मुद्दतों में उसे हाथ भी लगाऊं नहीं
पता बता के अजीबोगरीब काम अपने
खुदा की और परेशानियां बढ़ांऊ नहीं
और क्या आखिर तुझे ऐ जिंदगानी चाहिए?
आरजू कल आग की थी आज पानी चाहिए
ये कहां की रीत है जागे कोई सोए कोई
रात सब की है तो सबको नींद आनी चाहिए।
– Madan Mohan Danish