Main Aisi Nahi Thi
जिस रास्ते पर मैं चल रही हूं
मुझे मालूम तक नहीं कि आगे जाना कहां है
फिर भी चल रही हूं
और जिस रास्ते से होकर मैंने यहां तक का सफर तय किया है
उस रास्ते पर यूं ही यूं मेरे कदमों के निशान मुझे दिखाई देते है
मगर फिर भी मैं मुड़कर उस ओर वापस नहीं जा सकती
मगर मन करता है…
मन करता है कि काश कोई एक तो नामुमकिन सी ख्वाहिश मांगने का हक दिया होता खुदा ने
तो वापस वहां तक जाती जहां से सब शुरू हुआ था
मोहब्बत के, सपनों के, हसरतों के आगाज तक जाती
आगाज तक जाती क्योंकि मुझे मिलना है खुद से
मुझे मिलना है खुद से और मिलना है उन लोगों से जो कि तब मेरे साथ थे और जब की दिन और हम कुछ और ही थे
आज गुम हूं
और अनजान हुए लोगों से जो मेरे बगल में या मेरे सामने फ़क़त बैठे हैं या खड़े हैं
हां मगर इन चेहरों से तो वाकिफ हूं
महबूब से बिछड़ जाना बहुत दर्दनाक होता है
महबूब से बिछड़ जाना दिल में खलल कर देता है लेकिन यकीन मानो
खुद से बिछड़ जाना बदतर है
क्यूं?
तुम फोटो हाथ में लेकर लोग दर लोग पूछ नहीं सकते कि इसे देखा क्या?
तुम अखबार में इश्तिहार नहीं छपवा सकते
कि लापता?
तुम छुप छुप कर देख नहीं सकते
मालूम नहीं करवा सकते
की वो इंसान जो खो गया है अब वो खैरियत से है भी या नहीं?
तुम अपनी इस हालत का जिम्मेदार भी भला किसको ठहराओगे कि कौन छोड़ गया तुम्हें?
क्योंकि वो इंसान तो तुम खुद हो!!
तुम अगर रूककर एक जगह खड़े होकर, शांति से
याद करने की भी कोशिश करोगे ना
कि तुम कैसे हुआ करते थे?
तो यकीन मानो यादों की जगह बस हार मिलेगी।
ये जीती जागती मौत के जैसा है तुम जिंदा हो..
तुम जिंदा हो!!
मगर तुम्हारा जनाजा बिना चार कंधों के ही उठ चुका
पर ऐसे में तुम बैठकर बस अफसोस कर सकते हो
और वो कर के भी तुम्हें बस अफसोस ही 20
मगर मुझे एक बार रूबरू होना खुद से
मुझे देखना है, मुझे जानना है कि आज के दिन आखिर मैं कितनी बर्बाद हूं या कितनी और मोहलत बची है मेरे पास जिन्दगी तक वापस आने की।
मैं महज़ हाल का लिबास जिसमें ख्वाब, मोहब्बत, दर्द, जुस्तजू कुछ भी नहीं है.. मैं ये नहीं हूं
मैं मेरी रूह को कहीं पीछे छोड़ आई हूं
मुझे वापस जाना है
मैं अंजाम बन कर बहुत दूर तक आ चुकी
मुझे एक बार आगाज तक ले चलो
यकीन मानो मैं ऐसी नहीं हूं।
– Nidhi Narwal