Mera Ghar To Barsaato Mein Jala Hai By Kunal Verma | Hindi Poetry | Wordsutra

This beautiful poetry 'Mera Ghar To Barsaato Mein Jala Hai' has written and performed by Kunal Verma on stage of wordsutra.

 Difficult Words 

अता
= दान।

रिंद
= शराबी।

खला
= अंतरिक्ष।

Mera Ghar To Barsaato Mein Jala Hai

एक झूठा ख्वाब जन्नत का दिखाया जाता है 
जन्नत-वन्नत कुछ नहीं होती ऊपर बिछड़ी मां से मिलाया जाता है
तेरे आने की खुशी में 
बाग से तितलियां उड़ा दी सारी 
कमरे में मेरे अंधेरा था
सितारों से रोशनी नोच ली सारी 
और मुझे दर्द में भी देख कर ना आया पास तू मेरे
तो लगा यूं ही मर जाता बेकार तुझे आवाज मारी
जिस दुपट्टे से पोछें थे आंसू मैंने
मां ने आज तक वो चुन्नी धोयी नहीं है 
मैंने रवानी में आकर यूं ही कह दिया था 
कि मुझे डर लगता है
नतीजा ये कि आज तक मेरी मां सोई नहीं हैं
हर पहाड़ पे खुद को चढा़ना अच्छा नहीं होता
फकीरों से मुंह लड़ाना अच्छा नहीं होता
लाख अता किया है खुदा ने तुम्हें
सरेआम दिखाना अच्छा नहीं होता 
पछताओगे बहुत बात मान लो मेरी
पागलों को समझाना अच्छा नहीं होता।
तुम जाग सको तुम्हें ऐसी कोई सुबह नहीं मिलेगी
आना महफिलों में मेरी आगे की सफ में तो जगह नहीं मिलेगी
ढूंढने जो गये उसको तो हाथ में उसका केश आया
शायरी भी रोती है आजकल 
बड़ी बेअदबी से जौन पेश आया
भर के आंखो में समंदर गुरूर दरिया को दिखा दिया
एक दीवार-ए-दिल पर दर्द लिखा था मैंने शराब से मिटा दिया
यही तो रीत है हर बड़े शहर की,
मुझे कुछ भी ना देकर कोई धोखा नहीं दिया 
हां मगर बस इतनी सी शिकायत है किस्मत से मेरी
कि चंद पैसो ने आज तक घर लौटने का मौका नहीं दिया 
लाओ सारी दवाएं अभी मर्ज कर देता हूं 
और जितना तुम अपने इलाज पर खर्च करते हो उतना मै अपने मौत पर ख़र्च करता हूं
मेरे लिहाफ से कुछ ठंड कम कर दो
मेरे मयखाने से जमाना रिंद कर दो 
और जो कहते हैं खुद को खुदा जवाबों का 
ले जाओ मेरे चंद सवाल 
और उनका मुंह बंद कर दो
जब तक सर पे चढ़ के एक पांव आसमान में 
और दूसरा जन्नत में ना हो 
एक काम करो तुम शराब पीना बंद कर दो 
ना जाने कैसे लोग हैं हर बात पर झूठी कसमें खाते हैं 
इनको जाकर बताएं कोई जितना इनका सालाना खर्चा है 
उतने के मेरे तस्मे आते हैं।
मैं बात तक नहीं करता किसी से 
मोहब्बत क्योंकि बुरी बला है 
मैं कैसे यकीन कर लूं पानी के गीले होने का 
मेरा घर तो बरसातों में जला है 
मुझे जगा कर बरसों से मेरी नींद 
चैन से सो रही है 
मेरे बदन का एक एक कतरा खुद्दारी कह रहा है
कम्बख़त आंखें रो रही है 
ये किसने खोल दी है खिड़की
मेरे खतों को भिगो रही है 
तुम आज फिर से रो रही हो क्या
बाहर बरसात बहुत तेज हो रही है।
क्या हसीन हादसा हुआ उस दिन कुणाल
आंखें भीगी तो नींद कमाल आई 
और कितनी बेबस थी उसकी किस्मत 
खुद को मुश्किल से ना निकाल पाई 
और चांद-सितारे, तितलियां वैगरह काबू में करने वाली
मुझे पत्थर को न संभाल पाई।
फकत आसपास कुछ ना पाकर
बिस्तर ही जकड़ लिया कस के
फिर रात भर आंसू पोछे मैंने उसने, उसने मेरे
हो गए ना अलग
कुछ तो सोच लेते लड़ने से पहले 
मैंने छोड़ो, वक्त ने समझाया था तुम्हें 
बेवजह आगे बढ़ने से पहले
ये भी एक सितम है कि जब जिक्र आया उसका शेर में मेरे
मेरे होंठ आज भी कांपते हैं वो मिसरा पढ़ने से पहले
तू जहां होगा बस हमें चाहेगा 
इस बेचैनी में जिंदगी झोंक रखी है
तू कहीं वापस आए तो तुझे कुछ बदला ना मिले
बस इस वजह से घड़ी की सुइयां रोक रखी है 
पल भर में सुलझ जाती हैं उलझी हुई जुल्फें
मगर तमाम उम्र कट जाती है वक़्त के सुलझाने में
कल मिली फुर्सत तो सुलझा दूंगा तेरी उलझी हुई जुल्फें
आज जरा उलझा हुआ हूं मै वक्त के सुलझाने में
हमने बर्बादियों के मंज़र भी देखें हैं 
भरी बरसात में जलते घर देखें हैं
तूने चाहा ही नहीं मेरे हालात बदल सकते थे 
मेरे आंसू तेरी आंखों से निकल सकते थे 
और तुम तो ठहरी रही झील बनकर 
दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे।
तुझमें और मुझमें फर्क खला जितना है
गुस्सा मेरा बुरा बुरी बला जितना है
सहलाऊगां भी प्यार से मरहम भी लगाऊगां 
पहले ये तो देख लूं कि मुझे छूने में तेरा हाथ जला कितना है
                                    – Kunal Verma