Zindagi Jal Rahi Hai By Shivani Parashar | The Social House Poetry

The beautiful poem 'Zindagi Jal Rahi Hai' has base on environment and written and performed by Shivani Parashar on the stage of The Social House.

Zindagi Jal Rahi Hai

जिंदगी जल रही है 
लगता नहीं ये बात किसी को भी खल रही है
माना सभी आहत है यहां किसी ना किसी बात से
कोई किसी तकरार से कोई किसी इंकार से 
और कोई तो बस प्यार से 
मेरे साथ ये हुआ, मुझे वो नहीं मिला 
मुझे ये मिला तो मुझे वो क्यों नहीं मिला, से आगे बढ़कर 
क्या किसी ने गौर फरमाया कि हवा में इतना विष कैसे आया 
समुद्र को कचरे का घर किसने बनाया 
श्र्वेत आकाश को काली स्याही के बादलों में किसने छुपाया 
जिंदगी जल रही है 
लगता नहीं ये बात किसी को भी खल रही है
कहीं पास ही लोग पानी के लिए तरस रहे हैं 
और कहीं बाढ़ ग्रस्त लोग सड़कों पर ही पल रहे हैं।
क्या ये प्रकृति से हुए खिलवाड़ से नाता नहीं है
क्या भूल कर के स्वार्थ ये सब नजर आता नहीं है
काटकर के वृक्ष लंबी ऊंची पत्थरों की इमारतें बन रही है
क्या लगता है प्रकृति से खिलवाड़ करना सही है जिंदगी जल रही है 
लगता नहीं ये बात किसी को भी खल रही है
सुना है नेताजी देश की रक्षा को और परमाणु यंत्र लाना चाहते हैं 
हालात देखकर लगता नहीं युद्ध धन का नहीं पानी का होगा 
तो नेताजी जरा सुनिश्चित कर लेना 
क्या ये परमाणु यंत्र प्यास बुझा पाता है
क्यों मुश्किल है समझना? 
क्यों ये दुविधा की घड़ी है कि इंतकाम जरूरी है या प्यास बड़ी है
जिंदगी जल रही है 
लगता नहीं ये बात किसी को भी खल रही है
मैं औरों की क्या बात करूं 
यहां खुद को सहेजना हम सबको आता है 
हवा खराब हो या पानी 
जब तक मुझ तक ना आए ये ख्याल किसे सताता है? 
मगर दोस्तों ये जो जिंदगी जल रही है 
ये तेरी मेरी हर समस्या से बहुत बड़ी समस्या पल रही है
मालूम नहीं है ये बात 
फिर भी किसी को भी नहीं खल रही है
जिंदगी जल रही है….
                             – Shivani Parashar

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