Tere Shayar Ne Badi Dhoom Macha Rakhi Hai By Ismail Raaz | Shayari | Jashn-e-Rekhta

This beautiful Shayari 'Tere Shayar Ne Badi Dhoom Macha Rakhi Hai' has written and performed by Ismail Raaz on the stage of Jashn-e-Rekhta.

 Difficult Words: 

तुलू-ए-सहर
= सुबह उठना (morning rise)

शब-ए-जुलमात
= रात का अंधेरा( darkness of night)

जर्फ
= सहनशीलता, गंभीरता ( Tolerance, seriousness )

ग़म-शनास
= दु: ख का ज्ञाता ( knower of grief )
नदामत = पछतावा, पश्चाताप ( regret, repentance )

Tere Shayar Ne Badi Dhoom Macha Rakhi Hai

मेरी तन्हाई देखेंगे तो हैरत ही करेंगे लोग 
मोहब्बत छोड़ देंगे या मोहब्बत ही करेंगे लोग 
अब इस भ्रम में हर एक रात काटनी है मुझे 
के आने वाली तेरे साथ काटनी हैं मुझे
तुझे दिलाना है एहसास अपने इस दुख का 
तू कुछ तो बोल तेरी बात काटनी है मुझे
मुझे तुलू-ए-सहर की तसल्लीया मत दे
अभी तो ये शब-ए-जुलमात काटनी हैं मुझे

तेरे सताए हुए लोग जर्फ वाले हैं
हजार शिकवे है लेकिन​ लबों पे ताले हैं 
दरअसल मैंने मशक्कत नहीं मोहब्बत की
हथेलियों पर नहीं मेरे दिल पे छाले है 

जरा सी देर को सकते में आ गए थे हम  
एक दूजे के रास्ते में आ गए थे हम 
जो अपना हिस्सा भी औरों में बांट देता है
एक ऐसे शख्स के हिस्से में आ गए थे हम 

बात ऐसी भी भला आप में क्या रखी है
एक दिवाने ने जमीं सर पे उठा रखी है
इतेफाकन कहीं मिल जाए तो कहना उससे 
तेरे शायर ने बड़ी धूम मचा रखी है

मेहरबान हमपे हर एक रात हुआ करती थी
आंख लगते ही मुलाकात हुआ करती थी
हिज्र की रात है और आंख में आंसू भी नहीं
ऐसे मौसम में तो बरसात हुआ करती थी।

दर्द ऐसा नजरअंदाज नहीं कर सकते
जब्त ऐसा की हम आवाज नहीं कर सकते 
बात तो तब थी कि तू छोड़ के जाता ही नही
अब तेरे मिलने पे हम नाज नहीं कर सकते 

तेरी गली को छोड़कर पागल नहीं गया 
रस्सी तो जल गई है मगर बल नहीं गया 
मजनू की तरह छोड़ा नहीं मैंने शहर को 
यानी मैं​ हिज्र काटने जंगल नहीं गया 

पड़ी है रात कोई ग़म-शनास भी नहीं है 
शराब खाने में आधा गिलास भी नहीं है
मैं दिल को लेकर कहा निकलूं इतनी रात गए 
मकान उसका कहीं आसपास भी नहीं है
यहां तो लड़कियां अच्छा सा घर भी चाहती है
हमारे पास तो अच्छा लिबास भी नहीं है

कि जिंदगी तूने सुलूक ऐसे किए साथ मेरे 
वो तो अच्छा है कि बांधे हुए हैं हाथ मेरे  
रोज मैं लौटता हूं खुद में नदामत के साथ 
रोज मुझको कहीं फेक आते हैं जज्बात मेरे
मुझको सुनिए नजरअंदाज न कीजिए साहब
मेरे हालात से अच्छे है, ख्यालात मेरे।

                                – Ismail Raaz