Ab Vo Mere Saath Nahin Hai :- The beautiful poetry for Jashn-e-Rekhta is presented by Young Shayar Zubair Ali Tabish and also written by him which is very beautiful and delightful.
Ab Vo Mere Saath Nahin Hai
जरा ठहरो की शब फीकी बहुत है
तुम्हें घर जाने की जल्दी बहुत है
जरा नजदीक आकर बैठ जाओ
तुम्हारे शहर में सर्दी बहुत है
हमने पर्चे आंसुओं से भर दिए
और तुमने इतने कम नंबर दिए
ऊंचे नीचे घर थे बस्ती में बहुत
जलजले ने सब बराबर कर दिए
जिक्र हरसू बिखर गया उसका
कोई दीवाना मर गया उसका?
उसने जी भर के मुझको चाहा था
और फिर जी भर गया उसका
वो पास क्या जरा सा मुस्कुरा कर बैठ गया
मैं इस मजाक को दिल से लगा के बैठ गया
दरख़्त काट के जब थक गया लकड़हारा
तो एक दरख़्त के साए में जा के बैठ गया
अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है
तो बस यादों पे ख़र्चा चल रहा है
मोहब्बत दो-क़दम पर थक गई थी
मगर ये हिज्र कितना चल रहा है
बहुत ही धीरे धीरे चल रहे हो
तुम्हारे ज़ेहन में क्या चल रहा है
बस इक ही दोस्त है दुनिया में अपना
मगर उस से भी झगड़ा चल रहा है
दिलों को तोड़ने का फ़न है तुम में
तुम्हारा काम कैसा चल रहा है
सभी यारों के मक़्ते हो चुके हैं
हमारा पहला मिस्रा चल रहा है
दिल फिर उसकी गली में जाने वाला है
बैठे-बिठाए ठोकर खाने वाला है
कितने अदब से बैठे हैं सूखे पौधे
जैसे बादल शेर सुनाने वाला है
इट्टो को आपस में मिलाने वाला शख्स
अस्ल में एक दीवार उठाने वाला है
आखरी हिचकी लेनी है अब आ जाओ
बाद में तुमको कौन बुलाने वाला है
जो तेरे दर पर रखी जा रही है
वहीं पेशानी चूमी जा रही है
तुम अपनी ओढ़नी का ध्यान रखना
मेरी दस्तार ढूंढी जा रही हैं
वहां मैं प्यार लेकर आ गया हूं
जहां तनख्वाह पूछी जा रही है
मुझे हर वक्त ये लगता है ताबिश
मेरी तस्वीर खींची जा रही है
अब मेरे साथ नहीं है समझे ना
समझाने की बात नहीं है समझे ना
तुम मांगोगे और तुम्हें मिल जाएगा
प्यार है ये, खैरात नहीं है
मैं बादल हूं जिस पर चाहूं बरसूंगा
मेरी कोई जात नहीं है समझे ना
अपना खाली हाथ मुझे मत दिखलाओ
इसमें मेरा हाथ नहीं है समझे ना
– जुबैर अली ताबिश