Tu Ishq Hai Ya Khwaab Hai By Gaurav Jha | The Social House Poetry

About This Poetry :- This beautiful love poetry  'Tu Ishq Hai Ya Khwaab Hai' for The Social House is performed by Gaurav Jha and also written by him which is very beautiful a piece.

About This Poetry :- This beautiful love poetry  ‘Tu Ishq Hai Ya Khwaab Hai‘ for The Social House is performed by Gaurav Jha and also written by him which is very beautiful a piece.



Tu Ishq Hai Ya Khwaab Hai

कौन सा फूल दूं उसे मैं
वो खुद ही एक गुलाब है
कोई लिख रहा है शायरी 
वो शायरों का ख्वाब है 
खुद को कबूल करने से इतना डर रहे हो 
वो कौन अनजान है जिस पे तुम मर रहे हो 
तू इश्क़ है या ख्वाब है 
तेरा हुस्न लाजवाब है
किसी हूर की बूंदों से बनी 
तू पूरा एक तालाब है
मैं डूब जाऊं ना तैर पाऊं 
तू ऐसा एक सैलाब है 
तुझे कहना चाहूं, है दिल में तू 
हर ख्वाब में शामिल है तू 
उसी ख्वाब को कामिल तो कर 
मेरे प्यार को हासिल तो कर 
होगी सुबह तेरे साथ ही 
और रात भी तेरे बाद ही 
दिन भर तुझे मैं खुश रखूं 
भले कैसे हो हालात ही 
तू प्यार है इजहार भी 
तू ही खुशी संसार भी 
तू इश्क़ है या ख्वाब है
तेरा हुस्न लाजवाब है
कल तलक तू जान थी 
आज जान ली तूने मेरी 
जो बात की नशे में थी 
क्यों मान ली तूने मेरी
तू दूर मुझसे जा रही 
या पास मेरे आ रही है 
मैं इतना तुझको चाहता हूं 
तू क्यों ना मुझको चाह रही है 
है बात करते इतनी हम तो 
बात मेरी मान ले 
और टाल मत इस बात को तू 
अपना मेरी जान ले 
मैं जानता हूं चाहने वाले काफी तेरे हैं यहां
तू क्यों चुनेगी मुझको फिर ये सोचता मैं भी रहा
फिर जो छोड़ दी बात करनी मैंने तुझसे दो रोज भी अब क्या बताऊं हाल मेरा हो रहा अफ़सोस भी
मैं प्यार तेरा मांगता हूं आज सबके सामने 
सच निकल रहा है सब काम कर दिया है जाम ने
कल तलक तू जान थी 
आज जान ली तूने मेरी 
जो बात की नशे में थी 
क्यों मान ली तूने मेरी  
तू प्यार है इजहार भी 
तू ही खुशी संसार भी 
तू इश्क़ है या ख्वाब है
तेरा हुस्न लाजवाब है
एक नजर, एक दिन भी उसकी मिल जाए
उस खुशी को ही प्यार कहते हैं 
ये जो दो जिस्म लिपटे पड़े हैं 
इसे धिक्कार कहते हैं
Gaurav Jha