Jallianwala Bagh By Yahya Bootwala | UnErase Poetry

Jallianwala Bagh  :- On the 101 anniversary of historical massacre Jallianwala Bagh young poet Yahya Bootwala described his feelings about this place and pays a tribute to everyone who died there by this beautiful spoken words. Samuel Pandya added some background music in this short story. This video shot by BTS Art India. This short story is presented by UnErase Poetry.

Jallianwala Bagh  :- On the 101 anniversary of historical massacre Jallianwala Bagh young poet Yahya Bootwala described his feelings about this place and pays a tribute to everyone who died there by this beautiful spoken words. Samuel Pandya added some background music in this short story. This video shot by BTS Art India. This short story is presented by UnErase Poetry.

Jallianwala Bagh

मैं एक बार जलियांवाला बाग गया था
एक अलग बेचैनी होने लगी 
जैसे मानो कोई चीख रहा हो, चिल्ला रहा हो पुकार रहा हो पर इतनी खामोशी में भी कोई दिखा नहीं चलाते हुए 
चलते चलते मैं एक दीवार के पास पहुंचा 
वहां गोलियों के निशान थे 
वहां से फुसफुसाने की आवाज आ रही थी कि मानो कोई, कोई बात करना चाहता हो
पहले निशान से एक औरत की आवाज आई
जो हड़बड़ा कर अपने बेटे के बारे में पूछ रही थी
सुनो! तुम मेरी बेटे के बारे में कुछ जानते हो क्या?
वो तो अभी तक बहुत बड़ा हो गया होगा 
हां..उतना शरारती भी नहीं होगा जैसे हुआ करता था 
अभी तक तो उसकी शादी भी हो गई होगी 
और तुम्हारे जितना बड़ा बेटा भी होगा, मेरा एक पोता होगा 
छोड़ो, क्या तुम बस मेरे बेटे के बारे में कुछ भी जानते हो तो मुझे बस बता देना 
मां की आवाज में जब फिक्र होती है ना 
तो अपनी मां सी लगती है तो मैंने तुरंत ही हां कर दी
फिर थोड़ा आगे गया तो एक आवाज आई
सुनो! मां क्या आज भी उतने ही उत्साह से सवाल पूछ रही है कि थोड़ी निराश होने लगी है 
उसकी आवाज़ सुनते ही ऐसा लगा कि उस निशान से मेरा रिश्ता भी टूट गया होगा 
देखो उनको बताना मत कि मैं भी यहां पे हूं 
भोली है बेचारी रो देगी 
आपको फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है
बस जवाब मत देना। उन्हें वो इस सवाल के साथ ही खुश रहेगी 
दीवार के बीचोंबीच एक शायर था 
जो कह रहा था के त्यौहार में बहुत सारे रंग देखे थे मैंने 
पर उन सबको एक होता हुआ कभी ना देखा था
जब इतनी सांसे रूकती है
तो क्या हवा के रुख में भी फर्क दिखता है? 
क्या वो चलती है सोंधी सोंधी सी या उसमें भी कोई तूफान दिखता है?
उस दिन सड़के सुनसान ही थी या कोई जलजला उठा था इंसाफ के लिए
अरे किसान तो फसलें भी देख देख के काटे हैं 
ये तो गोलियां थी अंधाधुन क्यों चलाई उन्होंने?
पर सबसे ज्यादा दिल चीरने वाली बात की तो आखरी निशान ने
एक आदमी था जो हंसे जा रहा था 
जब मैंने पूछा हंस क्यों रहे हो? 
तो कहने लगा कि मैं उस दिन आजाद भारत के नारे लगा रहा था, गीत गा रहा था 
आज तुम गाओगे तो गोलियां नहीं चलेगी इसलिए हंस रहा हूं
पर तुम क्यों नहीं हंस रहे मैं कोई जवाब ही नहीं दे पाया
जब दीवारें बात करती हो और आप चुप हो जाओ तो मन में सवाल उठता है कि दरअसल मरा कौन है?
                                 – Yahya Bootwala