Mujhe Tumpar Ek Kavita Likhni Hai By Amandeep Singh | UnErase Poetry

This beautiful Love Poem 'Mujhe Tumpar Ek Kavita Likhni Hai' which is written and performed by Amandeep Singh for UnErase Poetry.


About This Poem:
This beautiful Love Poem ‘Mujhe Tumpar Ek Kavita Likhni Hai’ which is written and performed by Amandeep Singh for UnErase Poetry.

Mujhe Tumpar Ek Kavita Likhni Hai

मुझे तुम पर एक कविता लिखनी है
मगर उसके लिए अभी मैं तैयार नहीं हूं
मैं तुम्हारा नाम तो बखूबी जानता हूं 
पर उसके पीछे की चमक को सूरज की किरणों की तरह अपनी दिल की सतह पर आहिस्ते-आहिस्ते उतरते देखना चाहता हूं
तुम्हारी कद काठी मैंने तुमसे पूछ ली है पर तुम्हारी दिल की गहराई नापने में अभी मुझे थोड़ा वक्त लगेगा
वो रंग जो तुम्हें पसंद है, 
वो गीत जो तुम गुनगुनाती हो, 
वो जो तुम अब ख्वाब नहीं देखती हो
वो डर जो तुम भुला चुकी हो 
मालूम कर रहा हूं मैं पर जानना ये भी है 
कि वो रंग तुम्हें क्यों दीवाना बनाता है? 
वो गीत तुम्हें किसकी याद दिलता है? 
वो ख़्वाब अगर टूटा तो टूटा कैसे? 
वो डर तुमसे छूटा तो छूटा कैसे? 
ये सब कुछ लिखना है मुझे 
मगर अभी मैं तैयार नहीं हूं
अभी तो मैंने बस तुम्हारी आंखों की कसमें खाना सीखा है 
पर उनमें रखा पानी जो हर बूंद समंदर है 
उसके ख़ारेपन का एहसास होना अभी मुझमें बाकी है 
तुम्हारी दी गई दलीलों को मैं बडे़ ध्यान से सुन तो लेता हूं 
पर उनके पीछे का दर्द समझने में मुझे अभी थोड़ा वक्त लगेगा 
मैंने सुना है तुम्हारे घर वाले तुम्हें लड़कों से ज्यादा मिलने नहीं देते 
शाम के बाद बाजार की तरफ अकेले निकलने नहीं देते 
महीने में कुछ दिन तुम्हें मंदिर से दूर रखते हैं
ये तो बहुत प्यार करते हैं तुमसे 
पर कुछ छोटी चीजों के लिए मजबूर रखते है
मैं पूछूंगा उनसे… 
मैं पूछूंगा उनसे वो ऐसा क्यों करते हैं? 
जानना यह भी है कि तुम्हारे बड़े सपनों ने समाज की छोटी जिम्मेदारियों के सामने कितनी बार सर तोड़ा है?
कितनी बार दम तोड़ा है 
मुझे ये भी जानना है कि सुबह सवेरे बाजार से लौटते वक्त तुम्हे कितनी नज़रों ने छेड़ा है 
सब कहते हैं….
सब कहते हैं तुमने बहुतो का लोगों दिल तोड़ा है 
तुम बताओ ना मुझे तुम्हें किस-किस ने छोड़ा है
लिखना है मुझे ये सब 
मगर मैं अभी तैयार नहीं हूं
अच्छा सुनो क्या जब तुम LoL लिखती हो तो क्या सच में हंसती हो?
या बस awkwardness डालने के लिए यूं ही कहती हो 
क्या तुमने भी दोस्तों की सारे बेतुके सवालों का जवाब रखा है? 
क्या कॉलेज के आखिरी दिन जो मिला था वो गुलाब रखा है? 
तुम्हारी कलाइयों पर ये दबोचे कैसी हैं? 
तुम्हारी हंसी पे ये खरोचे कैसी है? 
क्या तन्हाई में अकेलेपन के गीत गाती हो? 
क्या सबसे जीत कर भी खुद से हार जाती हो? 
ये बातें, ये बातें तुम किसी को क्यों नहीं बताती हो?
सुनो ये सब कुछ लिखना है मुझे उस कविता में 
वो एक कविता जो एक सफर पूरा करने के बाद
मुझे तुम तक पहुंचाएगी
मुझे मालूम है सफर में बहुत से ऐसे मोड़ आएंगे 
जो मुझे एक छोटी लड़की के बारे में कई नई चीजें समझाएंगे 
कि जो एक लड़का बचपन से सिर्फ लड़कों के बीच में रहते हुए कभी सुन, सीख या समझ नहीं पाया आगे बढ़ने पर कुछ ठोकरें ये बतलायेगी 
कि मेरे साथ पढ़ने वाली लड़कियों की वो सारी बातें 
जो मैं ताउम्र नजरअंदाज करता रहा 
उनके लिए मैं वक्त रहते तुमसे माफी मांग लूं
उसी सफर में कुछ सड़कें होंगी जो टूटी हुई होगी तो उनकी मरम्मत तुम अपनी feminism की बातों से कर देना 
और वहीं कहीं पास में एक बड़ा डस्टबिन होगा
जिसमें मैं औरतों के खिलाफ बनाए हुए सारे वहम एक गठरी में डालकर फ़ेक दूंगा
और ये सफर पूरा करके मैं तुम तक आ जाऊंगा मगर मुझे मालूम है मैं तुम तक पहुंच नहीं पाऊंगा और शायद कभी नहीं लिख पाऊंगा 
वो एक कविता अपनी दोस्त, अपनी बहन, अपने प्यार, अपनी मां और अपनी जिंदगी में आने वाली हर उस महिला के बारे में
जिन्हें मैं अपनी ही खामियों की वजह से सही मायनों में कभी समझ नहीं पाया 
मुझे मालूम है, मुझे मालूम है मैं उनकी तरह कभी जी नहीं पाया 
लेकिन फिर भी, फिर भी मैं हर पहर कोशिश कर रहा हूं और कदम बढ़ा रहा हूं 
पहुंचने के लिए उस यकीन तक,
तुम तक
और तुम पर लिखी जाने वाली उस कविता तक।
                                       – Amandeep Singh