Is Qaabil Nahi Ho Tum By Mansi Soni | इस काबिल नही हो तुम | The Social House Poetry

About This Poetry :- This beautiful love poetry  'Is Qaabil Nahi Ho Tum' for The Social House is performed by Mansi Soni and also written by her which is very beautiful a piece.

About This Poetry :- This beautiful love poetry  ‘Is Qaabil Nahi Ho Tum‘ for The Social House is performed by Mansi Soni and also written by her which is very beautiful a piece.


Is Qaabil Nahi Ho Tum

तो मसरूफ़ हो आजकल अपनी नयी मोहब्बत के साथ? 
सुना है वो बात-बात पर झगड़ते नहीं और तुम तरसते हो उसे मनाने के लिए 
सुना है जिस्म तक की नजदीकियां बढ़ा चुके हो उसके साथ
सिर्फ़ मुझसे दूर जाने के लिए
सुना है वो आई लव यू Text में नहीं, 
तुम्हारे हाथों पर है लिखती 
फिर क्यों आंखें नम हो जाती हैं तुम्हारी?
जिस दिन तुम्हें उसमें मैं नहीं दिखती
वो सुबह-सुबह फोन करके तुम्हें उठाती नहीं होगी तुम्हें छूने से पहले दो पल अपनी नजरों के सामने बिठाती नहीं होगी
यूं वादे तो वो बड़े-बड़े करती होगी बिल्कुल तुम्हारी तरह 
पर उन्हें निभाना नहीं जानती 
यूं हाथ पकड़कर दिलासे खूब देती होगी 
मगर तुम्हारी आंख से बस वो बहने ही वाले अश्क को अपनी उंगली पर उठाना नहीं जानती
तो बता कौन मेरी तरह तेरे आधे झूट को भी
पूरा सच मान जाएगा कौन मांगेगा खैर तेरी?
कौन मांगेगा खैर तेरी? ये जानते हुए भी कि हर दफा तू उसकी झूठी कसम खाएगा 
कोई कर सके मुझ सा प्यार एक बार फिर तुझे इस दुनिया में 
मुझे माफ करना मेरी जां, इस काबिल नहीं हो तुम!
सुना है कि तुम्हें बात-बात पर कसमें खानी पड़ती हैं 
क्योंकि वो तुम को जरा सा भी ऐतबार नहीं करती
गुस्सा होने पर फोन मत करना कहकर सच में तुम्हारे फोन का इंतजार नहीं करती
सुना है कि तुम्हें सीने से लगाने से पहले वो चूमना पसंद करती है
साथ वक्त बिताने जैसे इश्क कि उसे समझ नहीं
इसलिए तुम्हारे साथ घूमना पसंद करती हैं
सुना है जिस विषय पे तुम दोनों बात करते हो वो भी मैं होती हूं 
तुम उसे कहते हो कि तुम मेरे लिए नहीं आज भी तुम्हारे लिए मैं रोती हूं 
बिल्कुल सही कहते हो..
बिल्कुल सही कहते हो क्योंकि दो पल का भी सुकून तुम किसी को दे सको 
उसकी खुशियों की हिफाजत कर उसके गमों को अपना कह सको 
अरे चढ़कर सूली इश्क कि तुम दर्दों को सह सको
माफ करना मेरी जां, इस काबिल नहीं हो तुम!
सुना है कि महंगे तोहफे देते हो तुम उसे और वो भी मना नहीं करती 
सूट पहनती है जिस दिन उसके दुपट्टे को तुम्हारे चेहरे पर लहरा कर 
अपने इश्क में फना नहीं करती
क्या खूबी है तुम्हारी भी…
क्या खूबी है तुम्हारी भी जिस जिस से तुम मिलते हो उसे अपना बना रहे हो 
जो पीछे छूट रहे हैं उन्हें कल रात का सपना बता रहे हो
इस सब के बाद भी वफा की बातें करते हो 
खुदा का खौफ करो!!
हर शाम एक नए शख्स से मुलाकाते करते हो
तुम, ‘मुझे अभी भी प्यार है’ कह कर फसा सके 
वो कसमें, वादे याद दिला कर मुझे रूला सके
खुद को इन बेवफाई की सलाखों के पीछे से आजाद कर सके 
एक बार फिर मेरी जिंदगी का रास्ता ढूंढ कर मुझे बर्बाद करने आ सके 
मुझे माफ करना मेरी जां, इस काबिल नहीं हो तुम!
सुना है शायर है वो भी मेरी तरह पर तुम्हारे बारे में तो एक भी बात नहीं लिखती
हां खूबसूरत अल्फ़ाज़ लिखती होगी
मगर सुना है मेरी तरह जज्बात नहीं लिखती
सुना है कि तुम रोक टोक करते हो वो फिर भी मनमानी करती है 
पर अफ़सोस तुम्हारे मुस्कुराने की वजह नहीं बन पाती 
जब भी कोई नादानी करती है 
किन किन बातों से तुम्हारा दिल दुख जाए, वो ये भी नहीं जानती
क्या कहती हैं, इश्क करती हैं?
इश्क के उसूलों में तो नहीं मानती
सुना है कि मनाती नहीं तुम्हें ये पूछ कर कि कहीं खफा तो नहीं 
अरे अभी भी वक्त है जा पूछ उससे
कहीं तू भी मेरी तरह बेवफा तो नहीं 
माफ करना अगर तुझे लगा हो, 
मैंने बेइज्जत किया है तुझे ये शायरी लिखकर 
मगर मेरी लिखी शायरी के वो हर लफ्ज़ में लिपटी इज्जत तुझे मिल सके, 
मुझे माफ करना मेरी जां, इस काबिल नहीं हो तुम!
                                          – Mansi Soni