Bas Udaas Hoon Tujhse Khafa Nahin by Ahmad Jamal | The Social House Poetry

The beautiful Ghazal  'Bas Udaas Hoon Tujhse Khafa Nahin' for The Social House is presented by Ahmad Jamal and also written by him which is very beautiful and delightful.

About This Poetry :- The beautiful Ghazal  ‘Bas Udaas Hoon Tujhse Khafa Nahin’ for The Social House is presented by Ahmad Jamal and also written by him which is very beautiful and delightful.




Bas Udaas Hoon Tujhse Khafa Nahin

मैं बस उदास हूं तुझसे खफा नहीं
मोहब्बत छोड़ी है हमने वफा नहीं
बनाने वाले ने इंसा बनाया है फरिश्ता नहीं 
मैं तुझसे दूर हो सकता हूं पर जुदा नहीं
तेरी नजर में राएगा हो सकता हूं मैं
तू सब कुछ हो सकता है पर खुदा नहीं
दिल-ए-मुज़्तर का खामियाजा जेर-ए-बरसात नहीं  है
मोहब्बत दिल का सदका है खैरात नहीं है 
यहां हर शय को हासिल है खुदा की नवाजिश 
यहां दर-ब-दर भटकना नई बात नहीं है
मैं हूं मुतमइन तुम लौट के ना आओगे
तुम्हारा पलट के देखना कोई बड़ी बात नहीं है
अगर ऐसा हो तेरे हुस्न पे ज़ेर-ए-जफर लग जाए 
तो ऐसा इश्क हो इस दम जो तुझको मोतबर लग जाए
तुम्हें जाना है तो जाओ ताल्लुक तर्क क्यों करते हो,  कहीं ऐसा ना हो जाने से पहले ही खबर लग जाए 
हिफाजत की दुआएं मैंने मांगी है कसम तेरी 
ये भी मुमकिन है कि तुझको मेरी भी उम्र लग जाए
उतर के देखना चाहूं निगाहों में तेरे खुद को 
कभी ऐसा भी हो जाए मेरे हाथों गौहर लग जाएं
उठो बेचैन होकर फज्र से पहले पहल में और 
तुझे छत पर ही आने में दोपहर लग जाएं 
अगरचे तुम दलीलें दो, अगरचे इंतेहा भी कर दो
यूं ही फिर मेरे नाम के आगे भी सबर लग जाए
मैं देखूं तुझे मोहब्बत भरी निगाहों से 
फिर यूं हो तुझको मेरी नजर लग जाए
ना मूड़ कर देख सकेंगे बिछड़ते हुए तुझे 
खुदा खैर करे मेरे पांव के आगे नासफर लग जाए
हुस्न-ए-पैकर जमाल होते हैं 
हाशिए पर कमाल होता है
रास्ते जिनके हो गुजर सबका 
मुझको वो दर मुहाल होते हैं
शायरों में भी नेक इंसा है 
जिनके बेहतर खयाल होते हैं
जिनको हासिल है पर्दादारिया 
उनके जलवे कमाल होते हैं 
जिनके एवज जवाब हो मुश्किल 
उनके आसान सवाल होते हैं
मेरे हाथों में जब भी हो खंजर
हाथ उनके भी लाल होते हैं
होंठ भी चाक हैं गरेबां भी 
इससे बेहतर भी हाल होते हैं
                              – Ahmad Jamal