About This Poetry :- This beautiful poetry, written by Kirti Chauhan, makes this poetry feel like an experience when someone leaves someone and realizes themselves to be alone after they leave. At such a time, life seems to be full of maiming. This poem reflects the original sentiment of this intention, which poet Kirti Chauhan presented under the label ‘The Social House’.
Ishq Hai Usko Ya Ghalat-Fahmi Paal Chuke Ho
तंग सड़कों पर खड़े चकाचौंध में क्या ढूंढते हो?
तंग सड़कों पर खड़े चकाचौंध में क्या ढूंढते हो,
अकेले हो, तुम इस भीड़ में बार-बार क्यों भूलते हो
महज बातें हैं जो सुनने में बहुत अच्छी लगती हैं
मेरी कविताएं झूठी बहुत है, झांसे में मत आना
इश्क अगर करते हो किसी से तो मुझे सुनने मत आना
इस कमरे की दीवारें पूछती है मुझसे
क्या आज अपनी आंखें मीच कर चैन से सोओगे
या आज भी अपनी आवाज दावे कंबल में सिसकियां भर रहे होगे
परेशान क्यों हो ये तो बता दो
कुछ और वजह है या मुझसे खफा हो
करवटे बदलोगे या आज बात भी करोगे
जिंदा तो हो इस घर में जीना कब शुरू करोगे?
तो बोलो.. तो बोलो, आज किसे खोने का इरादा किया है कम किया है या ज्यादा किया है
चांद को देखोगे या देखोगे उस जलते लट्टू को,
पंखे को देखोगे या देखोगे फोन में कैद मिट्ठू को
हां पता है मिट्ठू उसे सिर्फ तुम बुलाते थे
इस बिस्तर पर उसे अपने साथ सुलाते थे।
उसकी जुल्फें सवार रात भर उसे निहारते थे
उसके सोने के बाद बिन छुए उसे ताकते थे
खैर छोड़ो, छोड़ो सब बात नहीं है।
खैर छोड़ो उसमे अब वो बात नहीं है
आज इसीलिए वह मेरे साथ नहीं है
मन को इन्ही बातों से बहलाते हो ना
रोते वक़्त इसीलिए नजरें छुपाते हो ना
तुम बात क्यों नहीं करते हो उससे
क्यों आजकल नींद नहीं आती
सपनों में तो मिल ही सकते हो
वहां आंखे इस कदर नहीं रुलाती
अरे बस भी करो रोना!
सवालों को थोड़ा बंद कर लो
सुबह ऑफिस भी जाना है जल्दी आंखें बंद कर लो
उसकी तस्वीर आज भी तुम्हारे बटुए में कैद है ना
जब लगाई थी तब सूट हरा था
पर अब हो चुका fade है ना
वो कहती थी आंखों में काजल सिर्फ तुम्हारे लिए लगाती हूं
कानों में झुमको को सिर्फ तेरे लिए सजाती हूं
झुमके आज भी उसके इंतजार में है
मुझे पता है तू उसके प्यार में है
अंधेरी रातों में रोज जागा करते हो ना
उसके नाम से तुम आज भी भागा करते हो ना
तुम कहते हो, तुम अपनी कमजोर नब्ज खत्म करना चाहते हो
तुम क्यों उसकी याद में रोज रोज वही कुल्फी खाते हो
तुम खुद को उसमें ढाल चुके हो,
इश्क है उसे ये गलतफहमी पाल चुके हो
इस तैरती सी उम्मीद को गला क्यों नहीं देते?
तौफे आज भी संभालते हो, जला क्यों नहीं देते
जानती हूं मुश्किल बहुत है पर ना मुमकिन तो नहीं
सबकी सुनते हो पर खुद की सलाह क्यों नहीं लेते
इस कमरे की दीवारें पूछती है मुझसे कि आज भी अपनी आवाज दाबे सिसकीयां भरोगे?
– Kirti chauhan