Yaar Usne Mujhe Bahut Rulaya Poem by Kanha Kamboj | The Realistic Dice

This beautiful Poetry  'Yaar Usne Mujhe Bahut Rulaya' for The Realistic Dice is performed by Kanha Kamboj and also written by him which is very beautiful a piece.

About This Poetry :- This beautiful Poetry  ‘Yaar Usne Mujhe Bahut Rulaya‘ for The Realistic Dice is performed by Kanha Kamboj and also written by him which is very beautiful a piece.

Yaar Usne Mujhe Bahut Rulaya

तू जरूरी है हर जरूरत को आजमाने के बाद
तू चलाना मर्जी अपनी मेरे मर जाने के बाद 
है सितम ये भी कि हम उसे चाहते हैं
वो भी इतना सितम ढाने के बाद 

हो इजाजत तो तुझे छूकर देखूं
सुना है मरते नहीं तुझे हाथ लगाने के बाद 
वो रास्ते में मिली तो मुस्कुरा दिया देखकर
बहुत रोया मगर घर जाने के बाद
है तौहीन मेरी जो तुम कर रही हो
आवाज उठाई नहीं जाती सर झुकाने के बाद

कितनी पागल है मुझे मेरे नाम से पुकार लिया 
मुझे पहचानने से मुकर जाने के बाद
मुझसे मिलने आओगी ये वादा करो
मुलाकात रकीब से हो जाने के बाद
वैसे हो बड़े बदतमीज तुम कान्हा
किसी ने कहा अपनी हद से गुजर जाने के बाद

तेरी हर हकीकत से रूबरू हो गया हूं मैं
ये पर्दा किस बात का कर रही हैं
एक मैं हूं आंखों से आंसू नहीं रुक रहे 
एक तू है कि हंस के बात कर रही है 
लहजे में मुआफ़ी, आँखों में शर्म तक नहीं 
ये एक्टिंग का कोर्स तू लाजवाब कर रही है

सारी रात उसे छूने से डरता रहा
मैं बेबस, बेचैन बस करवटें बदलता रहा 
हाथ तो मेरा ही था उसके हाथ में
बस बात ये है कि जिक्र किसी और करता रहा

गिरा ले मुझे अपनी नजरों से कितना ही 
झुकने पर तो मजबूर मैं तुझे भी कर दूंगा 
एक बार बदनाम करके तो देख मुझे महफ़िल में
कसम से शहर में मशहूर मैं तुझे भी कर दूंगा

कहती है तुमसे ज्यादा प्यार करता है 
उसकी इतनी औकात है क्या?
रकीब का सहारा लेकर कान्हा को बुला दूंगी 
तेरा दिमाग खराब है क्या?

                                            – Kanha Kamboj