This beautiful poem ‘Wahi Tumhari Thhodi Ka Til‘ is written by the famous young poet Dr. Kumar Vishwas.
Wahi Tumhari Thhodi Ka Til
भाषण देने कभी गया था ,
मथुरा के कोई कॉलिज में ,
रस्ते भर खाने के पैसे बचा लिए थे
और ख़रीदे थे जो मैंने ,
जन्मभूमि वाले मंदिर से ,
मुझे देख जो मुस्काते थे ,
नटखट शोख़ इशारे कर के ,
तुम्हे देख जो शरमाते थे ,
सहज रास आखोँ में भर के,
आले में चुपचाप अधर पर वेणु टिकाये ,
अभी तलक़ क्या ,
वो छलिया घनश्याम रखे हैं….?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं…….?
आँसू की बारिश में भीगे ,
ठोड़ी के जिस तिल को मैंने ,
विदा-समय पर चूम लिया था
और कहा था ‘मन मत हारो ‘ ,
तुम से अनगाया गाया है ,
तुमको खो कर पर भी पाया है ,
चाहे मैं दुनिया भर घूमूँ ,
धरती भोगूँ , अम्बर चूमूँ ,
इस तिल को दर्पण में जब भी कभी देखना,
यही समझना ,
ठोड़ी पर यह तिल थोड़ी है ,
जग-भर की नज़रों से ओझल ,
मेरी भटकन रखी हुई है ,
मेरे चारों धाम रखे हैं ,
सच बतलाओ नए प्रसाधन के लेपन में,
चेहरे की चमकीली परतों ,
के ऊपर भी जिसमे तुमको ‘मैं’ दिखता था , गोरे मुखड़े वाली,
चाँदी की थाली में अबतक भी क्या मेरे शालिग्राम रखे हैं ?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं…….?
सरस्वती पूजन वाले दिन ,
मेरा जन्म-दिवस भी है जो ,
बाँधी थी जो रंग-बसन्ती वाली साड़ी ,
फाल ढूंढ़ने को जिस का मैं ,
तीन-तीन बाज़ारों तक़ खुद ,
दौड़-दौड़ कर फ़ैल गया था ,
बी. एड. की गाईड हो या हो
लव-स्टोरी की वी.सी.डी. ,
मौसी के घर तक़ जाने को ,
सीट घेरनी हो जयपुर की बस में चाहे ,
ऐसे सारे गैर-ज़रूरी काम ,
ज़रूरी हो जाते थे,
एक तुम्हारे कहने भर से ,
अब जिस के संग निभा रही हो ,
हँस-हँस कर अनमोल जवानी ,
उस अनजाने उस अनदेखे ,
भाग्यबली के हित भी तुमने ,
ऐसे ही क्या गैर-ज़रूरी काम रखे हैं …?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं…….?
– Kumar Vishwas
वही तुम्हारी ठोड़ी का तिल….