Khandar By Yahya Bootwala | Poetry

This beautiful positive Poetry 'Khandar' which is written and performed by Yahya Bootwala

About This Poetry :- This beautiful positive Poetry ‘Khandar‘ which is written and performed by Yahya Bootwala and Published this poetry in his own YouTube channel Yahya Bootwala Official. In this piece Yahya Bootwala tries to explain that no matter how dark the path is, we must keep the option of hope and happiness in our life. Think positively and not go towards negativity.



Khandar By Yahya Bootwala


मेरे घर के सामने एक खंडहर है
मैं रोज उसे घंटों तक देखता हूं
ताज्जुब की बात है उसमें रोज़ कुछ बदलता हुआ दिखता है
कभी उसकी छत पे जो छेद है वो बढ़ता हुआ दिखता है 
तो कभी उसके खिड़की के शीशे टूटते हुए नजर आते है
सीढ़ियां भी एक एक करके गिरती हुई दिखती है 
और वहां से उड़ते परिंदों की गिनती हर रोज घटती रहती है

कभी कभी ऐसा लगता कि जितना मैं उसे देख रहा हूं उतना ही वो मुझे देख रहा है 
कि मानों हम एक दूसरे को समझते हो या जैसे हम दोनों एक ही हों
अकेले से पड़े खाली से हो गए

मैं देखता हूं रोज कुछ बच्चे वहां जाते है खेलने के लिए 
उसके खालीपन में अपना सुकून ढूंढ लेते और फिर शाम को खुशी खुशी अपने घर रवाना हो जाते है
मैं सोचता कि कोई ठहरता नहीं तो क्या उसे बुरा नहीं लगता होगा क्या 
या वो भी आदि हो गया ऐसे रिश्तों का, मेरी तरह

हो ही गया होगा

वैसे भी कहते हैं कोई इमारत खंडर तब बनती है 
जब वो अपने अंदर के अंधेरे को ही अपना सच मान लें

हम पूरे दिन बस सोचते रहते कि एक दूसरे से क्या बात करें
पर जब रात को बैठते है तो बिल्कुल चुप रहते हैं
एक दूसरे की खामोशी से एक दूसरे के दुख का अंदाजा लगाने की कोशिश करते है
किसी की चुप्पी में खालीपन महसूस किया है, दर्द महसूस किया है
कि जैसे सांस लेना भी बोझ लग रहा हो
अरे आंसू तो सबके बह जाते है पर, पर कभी किसी की आँखों में ठहरे हुए आँसू देखे है 
जो दिखने से भी डरते हो 
जैसे किसी पौधे को पेड़ न बनना हो, फल देने की कोई आरजू न बची हो
अकेलापन खुदगर्ज बनाता है या तबाह करता है

नहीं पता

मैं फिर से उस खंडहर की ओर देखता हूं
किस उम्मीद में सांसे लिए जा रहा है वो, मैं, हम
हम सब सिर्फ ठीक होना चाहते है ना 
कल के मुकाबले आज थोड़ा ज्यादा खुश होना चाहते है
पर उसे आस है दूसरों से और हमें होनी चाहिए खुद से
क्योंकि हम ही हमारा आसमां है और हम ही हमारी जमीन हम ही तन्हा रेगिस्तान में है और हम ही रौशन जमाने में भी
हम ही अपना प्रेम है और हम ही हमारा दर्द भी 
हम जो आज चुनते हैं वही बनता हमारा कल है 
जो सही चुन लिया तो इतिहास, 
जो गलत तो चलते फिरते खंडहर हम भी। 

Written by:
Yahya Bootwala

Khandar By Yahya Bootwala