Apne Jaisa Koi Milta To Mohabbat Karte | Abbas Qamar Shayari

A Beautiful Shayari "Apne Jaisa Koi Milta To Mohabbat Karte" which is written and Performed by young generation poet Abbas Qamar on the stage of 'Jashn-e-Rekhta'.

 About This Shayari :

 A Beautiful Shayari “Apne Jaisa Koi Milta To Mohabbat Karte” which is written and Performed by young generation poet Abbas Qamar on the stage of ‘Jashn-e-Rekhta’.

Apne Jaisa Koi Milta To Mohabbat Karte

ऐसा लगता ही नहीं प्यास के पाले हुए हैं 
इतनी आसानी से दरिया के हवाले हुए हैं 
कट गयी उम्र हमारी ये शिकायत करते
अपने जैसा कोई मिलता तो मोहब्बत करते
पांवों में सफ़र नाम की जंजीर नहीं है
कुछ ख़्वाब हैं जिनकी कोई ताबीर नहीं है
मैं वक़्त की सरहद की तरफ़ देख रहा हूं
मीलों कोई तारीख़ भी तहरीर नहीं है
मुश्किल से हुई है मेरी दुनिया से रिहाई
मै देर से पहुंचा हूं ये ताख़ीर नहीं है
मंज़ूर नहीं है मुझे ईमान का सौदा
चिल्ले में तुम्हारे भी कोई तीर नहीं है 
दिन डूब गया चांद सितारे निकल आए
भीगी हुई पलकों से शरारे निकल आए
जो बात इशारों में हैं, बातों में कहां हैं
बातों के भी अंदर से इशारे निकल आए
वीरां है तो क्या दिल भी कभी बाग़-ए-इरम था
कुछ फूल तो बस शर्म के मारे निकल आए
बेरहम कोई है तो वो है वक़्त, रवा वक़्त
उस गोल बदन के भी किनारे निकल आए
बहते थे तबीयत में रवानी की बदौलत
बहते थे तो लगता था के धारे निकल आए
अब्बास क़मर बस करो दुनिया है ये दुनिया
इस कैद में भी पंख तुम्हारे निकल आए 
किसे फुर्सत-ए-माह-ओ-साल है, ये सवाल है 
कोई वक़्त है भी कि जाल है, ये सवाल है 
वो सवाल जिसका जवाब है, मेरी ज़िन्दगी 
मेरी ज़िन्दगी का सवाल है, ये सवाल है 
मैं बिछड़ के तुजसे बलन्दियो पे जो पस्त हो 
ये उरूज है की ज़वाल है, ये सवाल है 
कोई सितारा, फ़लक-सितादा नहीं मिलेगा
सितम-ज़दा हसरतों को जादा नहीं मिलेगा
उतार कर फेंक दी हैं मैंने तमाम यादें
सो ज़ेब-ए-तन अब कोई लिबादा नहीं मिलेगा
नहीं मिटेंगे कुदूरतों के सियाह धब्बे
लिबास-ए-हस्ती कहीं से सादा नहीं मिलेगा
सुना है दोश-ए-हवा पे होगी सवार ज़ुल्मत
सुना है जुगनू भी पा पियादा नहीं मिलेगा
और नहीं मिलेंगे उदास रेतों के चुप समंदर
अब एक क़तरा भी बे इरादा नहीं मिलेगा
सिमट के बाज़ार होने वाली है अब ये दुनिया
कुशादा-मंदों में दिल कुशादा नहीं मिलेगा
कहीं तो होगा इक ऐसा गुलशन, दिलों का मस्कन
जहां इसे कम उसे ज़ियादा नहीं मिलेगा
अश्कों को आरज़ू-ए-रिहाई है रोइए 
आँखों की अब इसी में भलाई है रोइए 
ख़ुश हैं तो फिर मुसाफ़िर-ए-दुनिया नहीं हैं आप 
इस दश्त में बस आबला-पाई है रोइए 
हम हैं असीर-ए-ज़ब्त इजाज़त नहीं हमें 
रो पा रहे हैं आप बधाई है रोइए 
Written By:
Abbas Qamar

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