Source
लेखक – वसीम बरेलवी
किताब – मेरा क्या
प्रकाशन – परम्परा प्रकाशन, नई दिल्ली
संस्करण – 2007
(शब्दार्थ)
किताब-ए-माज़ी – | किताब की स्मृति। |
वरक़ – | किताब, कागज का पत्ता। |
सफ़्हा – | पुस्तक का एक पृष्ठ, चेहरा। |
Main Chaahta Bhi Yahi Tha Woh Bewafa Nikle
Main chaahta bhi yahi tha woh bewafa nikle,
usey samajhne ka koi toh silsila nikle.
Kitaab-e-maazi ke varq ulat ke dekh jara,
na jaane kaun sa safha muda hua nikle.
Jo dekhne mein bahut hi kareeb lagta hai,
ussi ke baare mein socho toh faasla nikle.
(In Hindi)
मैं चाहता भी यही था वो बेवफा निकलें
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले
किताब-ए-माज़ी के वरक़ उलट के देख जरा
ना जाने कौन सा सफ़्हा मुड़ा हुआ निकले
जो देखने में बहुत ही करीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फासला निकले।
– Waseem Barelvi
< Previous Post
Next Post >
|
More Ghazal and Shayari of Waseem Barelvi