एक मुकुट की तरह | केदारनाथ सिंह
केदार जी को प्रकृति से बहुत लगाव रहता था ऐसा उनके कविताओं में साफ देखने को मिलता है। जब भी कोई विचित्र या अनोखा बिंब उन्होंने दिखाई देता है वो झट से इसे कविताबद्ध कर देते ताकि ये आजीवन जीवित रहे इन कविताओं में। ‘अकाल में सारस‘ नामक कविता-संग्रह में संकलित यह हिन्दी कविता ‘एक मुकुट की तरह‘ भी है।
एक मुकुट की तरह
पृथ्वी के ललाट पर
एक मुकुट की तरह
उड़े जा रहे थे पक्षी
मैंने दूर से देखा
और मैं वहीं से चिल्लाया
बधाई हो
पृथ्वी, बधाई हो !
– केदारनाथ सिंह
Prithvi ke lalaat par
Ek mukut ki tarah
Ude ja rahe the pakshi
Maine dur se dekha
Aur main wahin se chillaaya
Badhaai ho
Prithvi, badhaai ho !
– Kedarnath Singh