आमुख | केदारनाथ सिंह
‘आमुख‘ केदारनाथ सिंह जी द्वारा लिखी गई एक हिन्दी कविता है। यह केदार जी की ‘बाघ‘ नामक काव्य-संग्रह में सम्मिलित कविताओ में से एक है।
आमुख
बिंब नहीं
प्रतीक नहीं
तार नहीं
हरकारा नहीं
मैं ही कहूँगा
क्योंकि मैं ही
सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ
मेरी पीठ पर
मेरे समय के पंजो के
कितने निशान हैं
कि कितने अभिन्न हैं
मेरे समय के पंजे
मेरे नाख़ूनों की चमक से
कि मेरी आत्मा में जो मेरी ख़ुशी है
असल में वही है
मेरे घुटनों में दर्द
तलवों में जो जलन
मस्तिष्क में वही
विचारों की धमक
कि इस समय मेरी जिह्वा
पर जो एक विराट् झूठ है
वही है-वही है मेरी सदी का
सब से बड़ा सच!
यह लो मेरा हाथ
इसे तुम्हें देता हूँ
और अपने पास रखता हूँ
अपने होठों की
थरथराहट..
एक कवि को
और क्या चाहिए!
– केदारनाथ सिंह
Bimb nahin
Prateek nahin
Taar nahin
Harkara nahin
Main hi kahunga
Kyonki main hi
Sirf main hi janta hoon
Meri peeth par
Mere samay ke panzo ke
Kitne nishan hain
Ki kitne abhinn hain
Mere samay ke panze
Mere nakhunon ki chamak se
Ki meri aatma mein jo meri khushi hai
Asal mein wahi hai
Mere ghutnon mein dard
Talwon mein jo jalan
Mastishk mein wahi
Wicharon ki dhamak
Ki is samay meri jihwa
Par jo ek viraat jhuth hai
Wahi hai-wahi hai meri sadi ka
Sab se bada sach !
Yah lo mera haath
Ise tumhen deta hoon
Aur apne paas rakhta hoon
Apne hothon ki
Tharthrahat..
Ek kavi ko
Aur kya chaahiye!
– Kedarnath Singh