San 47 Ko Yaad Karte Hue – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

सन् ४७ को याद करते हुए | केदारनाथ सिंह 

'सन् ४७ को याद करते हुए' कविता केदारनाथ सिंह जी द्वारा लिखी गई एक हिन्दी कविता है।

इस कविता में केदार जी अपने बचपन के मित्रों गेहुँए, डिगने नूर मियां को याद करते हुए कई सवाल करते है जो अपने ही देश के थें, अपने लोग । जिन्हें जाना पड़ा था भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद। ‘यहां से देखो‘ केदारनाथ सिंह जी की प्रसिद्ध कविता-संग्रहो में से एक है जिसमें यह कविता ‘सन् ४७ को याद करते हुए‘ संकलित हैं।

सन् ४७ को याद करते हुए

तुम्हें नूर मियाँ की याद है केदारनाथ सिंह
गेहुँए नूर मियाँ
ठिगने नूर मियाँ
रामगढ़ बाजार से सुरमा बेच कर
सबसे आखिर मे लौटने वाले नूर मियाँ
क्या तुम्हें कुछ भी याद है केदारनाथ सिंह
तुम्हें याद है मदरसा
इमली का पेड़
इमामबाड़ा
तुम्हें याद है शुरू से अखिर तक
उन्नीस का पहाड़ा
क्या तुम अपनी भूली हुई स्लेट पर
जोड़ घटा कर
यह निकाल सकते हो
कि एक दिन अचानक तुम्हारी बस्ती को छोड़कर
क्यों चले गए थे नूर मियाँ
क्या तुम्हें पता है
इस समय वे कहाँ हैं
ढाका
या मुल्तान में
क्या तुम बता सकते हो
हर साल कितने पत्ते गिरते हैं पाकिस्तान में
तुम चुप क्यों हो केदारनाथ सिंह
क्या तुम्हारा गणित कमजोर है
                                      – केदारनाथ सिंह