फ़ीतों की ऐसी तैसी Poetry Lyrics | Akshay Nain | The Social House Poetry

फ़ीतों की ऐसी तैसी Poetry has written and performed by Akshay Nain on The Social House's Plateform.

फ़ीतों की ऐसी तैसी Poetry Lyrics

ये आरज़ू ये जूस्तजु फिर किसलिए 
हूँ तेरा मैं, हैं मेरा तू फिर किसलिए 
और ना मिला जन्नते छोड़ तू जमीं पे कभी 
ये आँख में नमी 
सांस में जूनून फिर किसलिए 
क्या हमारे मरने का इल्ज़ाम तुम अपने सर लोगीं क्या? 
और ये खबर सुनते ही खुदखुशी कर लोगी क्या? और सुनते हैं बिकने लगी है जहन्नुम में इमारतें बहुत 
ये तेवर, 
ये नखरा,
ये गुस्सा बेच के घर लोगी क्या?
खीच कर आसमानों से मुझे लाया गया 
खींच कर आसमानों से मुझे लाया गया 
बगैर मेरी रजा के हमको मिलवाया गया 
और तुम से ना रोका गया, 
ना बुलाया गया, 
ना मनाया गया 
सच कहूँ तुझपे मेरा सारा वक़्त जाया गया।
बेशर्म निगाहें, गले में बाहें 
फीतों की ऐसी तैसी 
और आदाब, नमस्ते बहुत शुक्रिया रीतों की ऐसी तैसी 
और आजादी का गंदा गाना सुन लो 
या तो मार जाओ 
इसके, तेरे और तुम्हारे गीतों की ऐसी तैसी 
दो गज़ ज़मीं, दो आँख भर 
वो आसमां में जी लिये 
कुछ आदमी भोले थे मिट्टी के मकां में जी लिये
और तुमने उनकी ख्वाहिशों को नोच के घर भर लिये 
वो अपने बच्चों के खिलौनों की दुकां में जी लिये 
वो जो तुमने अपने झुमके मेरी ग़ज़लों पे रखे थे वो आज भी वही रखे है
और वो जो तुम अपनी पायल 
मेरी दराज में भूल गई थी 
वो आज भी वहीं पड़ी है उसे ले जाओ..! 
उसे ले जाओ क्योंकि वो दराज अब सिमट गई है
वो बस अब उस घायल जितनी बची है 
जो बचा है उसमें मुझे कुछ हिसाब रखना है 
जो बचा है हमारे बीच 
तुम्हारा झुमका बहुत भड़का चुका मेरी ग़ज़लों को मेरे ही ख़िलाफ़ 
उसे समझाओ की ये मुझसे बगावत नहीं करेंगी
तूम्हारे लिए
वो जो लखनऊ के मीना बाजार का इत्र तुम यहाँ छोड़कर गयी थी 
वो आज कल तुम्हें ढूँढ रहा है 
आँखें लाल किये हाथ में खंजर लिए  
कही छुप जाओ कुछ दिन के लिए 
वो तुम्हे जान से मार देगा
और वो जो तुमने बातें की थीं ना
आसमानो की, तारों की, बहारों की, कतारों की
उन्होंने पिछले हफ्ते मेरे कमरे की खिड़की से कूद के खुदकुशी कर ली।
और बहुत बड़े कागज़ पे कातिलों का नाम लिख के गई है
तुमपे इल्ज़ाम नहीं आया हैरत है
हैरत है तुमपे इल्ज़ाम नहीं आया।
                                      – Akshay Nain