दाने | केदारनाथ सिंह
‘अकाल में सारस‘ नामक कविता-संग्रह जिसमें ‘दाने’ कविता केदारनाथ सिंह जी द्वारा रचित एक हिन्दी कविता है।
दाने
नहीं
हम मंडी नहीं जाएँगे
खलिहान से उठते हुए
कहते हैं दाने
जाएँगे तो फिर लौटकर नहीं आएँगे
जाते-जाते
कहते जाते हैं दाने
अगर लौट कर आए भी
तो तुम हमें पहचान नहीं पाओगे
अपनी अंतिम चिट्ठी में
लिख भेजते हैं दाने
इसके बाद महीनों तक
बस्ती में
कोई चिट्ठी नहीं आती।
– केदारनाथ सिंह
Nahin
Hum mandi nahin jayenge
Khalihaan se uthte hue
Kahte hain daane
Jayenge to phir lautkar nahin ayenge
Jaate-jaate
Kahte jaate hain daane
Agar laut kar aaye bhi
To tum hamen pahchaan nahin paaoge
Apni antim chitthi mein
Likh bhejte hain daane
Iske baad mahinon tak
Basti mein
Koi chitthi nahin aati.
– Kedarnath Singh