टूटी हुई, बिखरी हुई – शमशेर बहादुर सिंह | हिन्दी कविता

टूटी हुई, बिखरी हुई | शमशेर बहादुर सिंह ‘टूटी हुई, बिखरी हुई’ कविता टूटी हुई बिखरी हुई चाय की दली हुई पाँव के नीचे पत्तियाँ मेरी कविता बाल, झड़े हुए, मैल से रूखे, गिरे हुए,  गर्दन से फिर भी चिपके  … कुछ ऐसी मेरी खाल, मुझसे अलग-सी, मिट्टी में मिली-सी दोपहर बाद की धूप-छाँह में … Read more